Tuesday, January 25, 2011

गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर......



मैं निराश नहीं हूँ, मैं हताश नहीं हूँ | 

मैं मानता हूँ कि..... गलतियां हुईं हैं,
मैं मानता हूँ कि..... सब कुछ अच्छा नहीं है;
मैं मानता हूँ..... सुधार की आवश्यकता है |

किन्तु हमारे विखंडन का जो सपना देखते हैं,
मैं उनसे यह कहना चाहता हूँ...
ये उनकी एक कल्पना है....
केवल कोरी  कल्पना है,
जिसका यथार्थ से कोई सम्बन्ध नहीं है;
जिसका यथार्थ में कोई आधार नहीं है |


इस गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर आप सबसे कहना चाहता हूँ......

विकास की प्रक्रिया में जो असफलताएं हमें मिली हैं ;
उसे स्थायी ना समझो, उसे ही अपना भाग्य ना समझो |
याद रखो तुम किस संस्कृति के वाहक हो;
याद रखो तुम किस परंपरा के निर्वाहक हो |
याद रखो उन त्यागों को, याद रखो अमर बलिदानों को |

तो आओ, ये निराशा और किन्किर्त्व्यमुड़ता का आवरण उखाड़ फेंकते हैं...
जनमानस में आशा का प्रवाह करते हैं, निर्माण का प्रयत्न करते हैं, 
देश के निर्माण में...हम अपना योगदान करते हैं |

जय हिंद!!!!!!!