Monday, August 16, 2010

कब तक......

प्रजातंत्र चल रहा है, चलता रहेगा |
हम चल रहे हैं, चलते रहेंगे |
देश का विकास भी हो ही रहा है,
और उम्मीद है, यह होते भी  रहेगा |

किन्तु प्रश्न यह है कि,
कब तक, आखिर कब तक 
सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा ?

कब तक, यह काम चलाने की प्रवृत्ति चलती रहेगी,
कब तक, यह जुगाड़ भिड़ाने की प्रवृत्ति चलती रहेगी,
कब तक आकाओं की जी-हुजूरी हमसे होती रहेगी,
कब तक, आखिर कब तक,  हमारी चुप्पी ऐसे ही बनी रहेगी |
कब तक सियासत के चंद धूर्त खिलाडी, हमें मोहरों जैसे पीटते रहेंगे,
कब तक और आखिर कब  तक ............
हम खून का यह कड़वा घूंट पीकर भी सब कुछ सहते रहेंगे |

मैं बस इस कब तक का उत्तर जानना चाहता हूँ ...बस इस कब तक का.....

क्यूंकि जिस दिन इस कब तक का हमें उत्तर मिल गया,
उस दिन यूँ समझिए हमारी सारी समस्यों का हल निकल गया |
उस दिन हमारे आकाओं की जडें हिल जायेंगी ,
उस दिन शतरंज के सारे खेल बिगड़ जायेंगे 
और हम जैसों के कुछ शब्द बच जायेंगे.....
और हम जैसों के कुछ शब्द बच जायेंगे |