तुने कितने सपने दिखाए थे,
मन में ना जाने कितने ही अरमान जगाये थे |
तेरे सहारे,
एक स्वर्णिम भविष्य की कल्पना की थी,
चिलचिलाती धूप में छाँव की तमन्ना की थी |
तेरे भरोसे,
सपनों की एक दुनिया बनायी थी,
इच्छाओं आशाओं की इक पुटली सजायी थी |
सोचा था,
अपने इस वीरान जीवन को सतरंगी कर दूंगा,
इन दुःख और निराशा के बादलों को भेद दूंगा |
पर ना,
तुझसे मेरी ख़ुशी देखी ना गयी,
एक सामान्य मनुष्य की महत्वाकांक्षा सही ना गयी |
मेरे हर पथ में तुने कांटे बोंये,
हर चीज छिनी जो मुझे प्यारी थी,
तुने मेरे हर सपने तोड़े,
मेरी जरा सी ख़ुशी भी तुझे ना गँवारी थी?
पर तुने क्या सोचा,
इन सबसे मैं पराजित हो जाऊंगा, निराश हो जाऊँगा ?
हताश होकर क्या अपनी महत्वाकांक्षाओं को भूल जाऊंगा ?
तो मैं बस तुझसे कहना चाहता हूँ ,
तुने अभी मेरा चरित्र समझा ही नहीं है,
मेरी इच्छाओं की गहारियों को नापा ही नहीं है |
तुने मेरी चाल जरूर धीमी कर दी है ,
पर मैं हताश नहीं हूँ, निराश नहीं हूँ,
मैंने अपनी महत्वाकांक्षाओं को छोड़ा नहीं है,
अपनी इच्छाओं को त्यागा नहीं है |
तुझे जीतनी चालें चलनी है, तू चल दे;
तुझे जीतने कंकड़ बिछाने हैं, बिछा दे ;
पर याद रख,
तेरे बनाये इन तमाम झंझावातों को मैं पार कर लूँगा,
देर से ही सही, हर सफलता मैं प्राप्त कर लूँगा |
तू मुझे मेरे पथ से विचलित ना कर पाएगी,
लाख कोशिशें कर ले, मुझे परास्त नहीं कर पाएगी |