Saturday, November 27, 2010

ऐ नियति....

ऐ नियति , 
तुने कितने सपने दिखाए थे,
मन में ना जाने कितने ही अरमान जगाये थे |
तेरे सहारे,
एक स्वर्णिम भविष्य की कल्पना की थी,
चिलचिलाती धूप में छाँव की तमन्ना की थी |
तेरे भरोसे,
सपनों की एक दुनिया बनायी थी,
इच्छाओं आशाओं की इक पुटली सजायी थी |
सोचा था, 
अपने इस वीरान जीवन को सतरंगी कर दूंगा,
इन दुःख और निराशा के बादलों को भेद दूंगा |  

पर ना, 
तुझसे  मेरी ख़ुशी देखी ना गयी,
एक सामान्य मनुष्य की महत्वाकांक्षा सही ना गयी |
मेरे हर पथ में तुने कांटे बोंये, 
हर चीज छिनी जो मुझे प्यारी थी,
तुने मेरे हर सपने तोड़े, 
मेरी जरा सी ख़ुशी भी तुझे ना गँवारी थी? 

पर तुने क्या सोचा,
इन सबसे मैं पराजित हो जाऊंगा, निराश हो जाऊँगा ?
हताश होकर क्या अपनी महत्वाकांक्षाओं को भूल जाऊंगा ?

तो मैं बस तुझसे कहना चाहता हूँ , 
तुने अभी मेरा चरित्र समझा ही नहीं है,
मेरी इच्छाओं की गहारियों को नापा ही नहीं है |
तुने मेरी चाल जरूर धीमी कर दी है ,
पर मैं हताश नहीं हूँ, निराश नहीं हूँ,
मैंने अपनी महत्वाकांक्षाओं को छोड़ा नहीं है,
अपनी इच्छाओं को त्यागा नहीं है | 
तुझे जीतनी चालें चलनी है, तू चल दे;
तुझे जीतने कंकड़ बिछाने हैं, बिछा दे ;
पर याद रख, 
तेरे बनाये इन तमाम झंझावातों को मैं पार कर लूँगा,
देर से ही सही, हर सफलता मैं प्राप्त कर लूँगा |
तू मुझे मेरे पथ से विचलित ना कर पाएगी, 
लाख कोशिशें कर ले, मुझे परास्त नहीं कर पाएगी |


Monday, November 22, 2010

आइये इस ज़िन्दगी नामक किताब का नया संस्करण निकाला जाए....

अपनी ज़िन्दगी से हमें कई शिकायतें हैं.....

कहीं ना कहीं हम सब अपनी ज़िन्दगी से उब चुके हैं ,
इन तमाम परेशानियों से खिंच चुके हैं |
हम सबके जीवन में 
कई तरह की चिंताएं है ,
तमाम असफलताएं हैं , 
दबी-कुचली  इच्छाएं हैं . 
ना जाने कितनी ही....आधी-अधूरी  आशाएं हैं |

इन सब के चक्कर में ,
हमने जीवन को भागमभाग का एक खेल बना रखा है
ज़िन्दगी की किताब के अधिकांश पन्नों को ,
दुःख और परेशानियों से भर रखा है | 
इन पन्नों में खुशियों का कहीं नामों निशाँ नहीं दीखता;
इनमें हर पल एक मातम सा हो रखा है |

और हम बस, इन्हीं पन्नो को पलटते जा रहे हैं,
इससे ही ज़िन्दगी परिभाषित करते जा रहे हैं | 


मैं तो कहता हूँ ,
ज़िन्दगी की ये किताब अब पुरानी हो गयी है |
आइये इस ज़िन्दगी नामक किताब का नया संस्करण निकाला जाए ;
नए पन्ने जोड़े जाएँ, नए अध्याय जोड़े जाएँ |

आइये, इसमें जोड़ते हैं उन पन्नो को, उन छोटे-छोटे तमाम पलों को, 
जिन्हें हम इस भाग दौड़ में भुला देते |
आइये जोड़ते हैं उन तमाम छोटी छोटी खुशियों को,
जिनके मायने आज बदल गए हैं | 
आइये दुबारा खोजते हैं उन रिश्तों को,
जिन्हें हम आगे बढ़ने के चक्कर में भूल चुके हैं |
आइये जोड़ते हैं उन आदर्शों को,
जो आज किताबी बातें बनकर रह गए हैं |  
आइये जोड़ते हैं उन अहसासों को, उन अनुभूतियों को 
जो हमें इंसान बनती हैं |

आइये जीने रहने का मूल उद्देश्य बदल देते  हैं ,
जो की जिंदादिली से जीना है, दूसरों के लिए कुछ करके जाना है,
ना की हर पल अपने स्वार्थ में भागते रहना |