Tuesday, March 23, 2010

कुछ लिखने की इच्छा हो रही है, किन्तु पता नहीं क्या लिखा जाए?


कुछ लिखने की इच्छा हो रही है, किन्तु पता नहीं क्या लिखा जाए? मुझे जरा सा भी अनुमान नहीं है कि मैं क्या लिखना चाहता हूँ और मैं क्या लिखूंगा | फिर भी मैं लिखने बैठ गया | और अब प्रश्न है कि क्या लिखा जाए और कैसे लिखा जाए?

लेकिन अगर गौर किया जाए इन प्रश्नों से पहले एक मूल प्रश्न यह है कि मैं लिखने बैठा ही क्यूँ ? जब कोई विषय ही नहीं, कोई योजना ही नहीं तो मैं बैठा ही क्यूँ ? बिना किसी तैयारी कि जंगे-मैंदान में उतरना क्या उचित है ? कहते हैं जंग जीतने के दो तरीके होते हैं-- पहला यह कि आप पूरी तैयारी और योजना के साथ मैदान में उतरे या फिर आप हौसले के साथ उतर जाए और फिर "जो होगा देखा जायेगा वाली भावना" ही आपको विजयी बनवाएगी | हालांकि लिखना जंग में उतरने जैसा तो नहीं है, फिर भी बिना किसी योजना के आज कि इस नियोजित (planned) दुनिया में कुछ भी करना शायद असंभव ही है | बच्चे के पैदा होने से पहले ही माँ-बाप उसके स्कूल का बंदोबस्त करते हैं, जरा सा बड़ा होते ही उसके कैरियर की योजना बन जाती है, फिर नौकरी की योजना और फिर तो जीवन स्वयं ही नियोजित हो जाता है | कभी-कभी तो लगता है कि लोगों के जीवन में से आश्चर्य (surprise element) ख़त्म होते जा रहा है | हर कोई एक सुनियोजित (well planned) जीवन जी रहा है | लोगों ने अपने मन, अपनी इच्छाओं को दबाकर जीना सीख लिया है | वह स्वच्छंद मनुष्य जो सबकुछ भुलाकर अपने लिए, अपने मन की आतंरिक ख़ुशी के लिए जीता था, लगता है कि विलुप्तप्राय प्राणी (endangered species) की श्रेणी में आ गया है | शायद आश्चर्य और उसके साथ जुडी अनिश्च्चित्ता में जो एक डर था, आनंद था, हम उसे भूल गए हैं | दूसरों के बनाये रास्ते, उनकी बनायी हुई उपलब्धियों के पीछे भागे जा रहे हैं ; भूलते जा रहे हैं कि हम क्या चाहते हैं, हमारा मन क्या चाहता है |

लेकिन गनीमत यह है कि मेरे लिखने के साथ ऐसा नहीं है | मैंने अपने लेखन को नियोजित नहीं किया है | मैं हर बार लिखने के पहले यह नहीं सोचता है कि क्या लिखना है कैसे लिखना है? जब भी मन किया शुरू हो गया और बस अपने मन से लिखते गया | जैसा भी लिखा, मुझे नहीं मालूम किन्तु मैं यह कह सकता हूँ कम से कम मैंने अपने मन से लिखा, जो मेरी भावनाएं थी उन्हीं ने शब्दों का रूप लिया और मुझे लगता है कि शायद यही लेखन है | मेरे हिसाब से आप कैसा लिखते हो, क्या लिखते हो, इन सब से कहीं ज्यादा यह महत्वपूर्ण है कि आप मन से लिखो | जब आप मन से लिखते हो तभी आप पाठकों तक पहुँच पाते हो और शायद यही सफल लेखकों की सफलता का राज है | किन्तु जो भी हो, बस आप लिखिए, मन से लिखिए | बहुत सारी योजनायें आपकी भावनाओं का क़त्ल कर देती हैं और फिर न तो लिखने में आनंद है न ही जीवन में | इस नियोजन (प्लानिंग) के बंधन से मुक्त होइए..... शायद तभी आप जीवन का सच्चा आनंद ले सकते हैं |

Saturday, March 20, 2010

हमने भी अब देख लिया है देश के कर्णधारों को...

हमने भी अब देख लिया है देश के कर्णधारों को,
पढ़े-लिखे अनपढो को, बुद्धिजीवियों के विचारों को |

हर जगह ये राग अलापते,
राजनीति विकृत है, तंत्र बिगड़ रहा है,
आम आदमी परेशानियों के बोझ से मर रहा है |
राजनीति को गन्दा दलदल कहना इनकी आदत है,
अपने को सफेदपोश बताकर,
जिम्मेदारियों से बचने में इनको महारत है |
इनके अनुसार,
ये सीधा साधा जीवन व्यतीत करते हैं,
ये हर प्रकार की राजनीति और भ्रष्टाचार से दूर रहते हैं,
ये विचारवान और विवेकशील प्राणी हैं,
ये असत्य के शत्रु और सत्य के पुजारी हैं|

किन्तु मैं तो कहता हूँ,
ये शुतुरमुर्ग हैं |
अपनी गलतफहमियो में मशगूल हैं, सच्चाई से कोसों दूर हैं |
बस सिर को रेत में घुसाकर उसी को सत्य मान लेते हैं,
अपने आसपास की गन्दगी देख ही नहीं पाते हैं |
देश की राजनीति को दिन भर गाली देने वाले इन बुद्धिजीवियों को,
अपने आस पास की राजनीति दिखती ही नहीं,
उसमे जो कूटनीति मचती है, वो दिखती ही नहीं |
जाति के नाम पर वोट पड़ना गलत है, महापाप है,
हॉल के नाम पर सबकुछ करना, हॉल धर्म है; जन कल्याण है |
इनके अनुसार जनता जागरूक नहीं हैं, देश में वोट ख़रीदे जाते हैं,
यहाँ पर इलेक्शन के दिन चिट पकडाए जाते हैं |
और फिर लोग परिवर्तन की बात करते हैं,
और मुलायम की जगह मायावती का समर्थन करते हैं |

और इसपर ये दावा करते हैं,
ये पढ़े लिखे लोग हैं,
बुद्धिजीवी हैं, देश के कर्णधार हैं |