मैं अपनी ट्रेन के इंतज़ार में प्लेटफ़ॉर्म पर बैठा था | इतेज़ार करना शायद ही किसी को पसंद हो, मुझे तो बिलकुल नहीं | जब मैंने आजतक किसी लड़की का इंतज़ार नहीं किया तो किसी और का इंतज़ार करना कितना दुखदायी हो सकता है, इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं | लेकिन मेरी एक बुरी आदत भी है और वो है समय से काफी पहले स्टेशन पहुँच जाना | हांलांकि भारतीय रेलवे, भारतीय सरकारी कर्मचारियों की तरह है किन्तु पता नहीं कब किसी कर्मचारी का मूड बिगड़ जाए और फिर लेट आने की वजह से आपका काम न हो | इसी डर से मैं हमेशा समय से पहले पहुँच जाता हूँ | लेकिन मैं जिस अपवाद से इतने दिनों से डरा हुआ हूँ आज उसकी गुंजाईश नहीं है और ट्रेन पहले ही विलम्ब हो चुकी है | और मैं हर बार की भांति बेंच पर बैठा समाचार पत्र में व्यस्त था |
"आशु भैया, कैसे हैं?"
मैंने पेपर से सिर उठाकर देखा तो एक लड़का मेरे सामने मुस्कराते हुए खड़ा है |
"आप फिर कभी इंस्टिट्यूट नहीं आये| काफी बिजी हो गए होंगे जॉब मिलने के बाद| कन्वोकेशन पर भी आप नहीं आये थे |"
मुझे चेहरा जाना पहचाना तो लगा किन्तु मैं नहीं समझ पा रहा था की ये कौन है | और इसे कैसे मालूम कि मैं कन्वोकेशन में नहीं गया था | कोई बैचमेट तो नहीं लगता न ही जूनियर|
मेरी परेशानी और आश्चर्य भरे चेहरे को लगता है उसने पहचान लिया और बोल पड़ा -" अरे आपने पहचाना नहीं, मैं सुब्रो, वो कैंटीन वाला | याद आया ?? "
ओह, अरे ये तो सुब्रो है, मैं इसे कैसे भूल सकता हूँ| इसके हाथ कि चाय और मैगी खा-खा कर तो मैंने IIT में पांच साल गुजारे हैं|
"अरे सुब्रो तुम, कैसे हो और यहाँ क्या कर रहे हो ? यार मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम्हें यहाँ देखूंगा |"
"मैं ठीक हूँ और आप कैसे हैं?"
"यार मैं भी मस्त हूँ | जिंदगी सही से चल रही है और अब थोड़ी स्थिरता आ गयी है | और तुम्हारे कैंटीन का काम कैसा चल रहा है ?"
"मैंने वो कैंटीन तो पहले ही छोड़ दी थी| अब मैंने एक रेस्टोरेंट खोल लिया है |आपके संस्थान छोड़ने के बाद काफी कुछ बदल गया है|"
"अरे ये तो बड़ी अच्छी बात है | और क्या चल रहा है लाइफ में? "
"बाकी सब बढ़िया है| मैंने भी 12th पास कर लिया है | आपने थोडा-थोडा पढ़कर पढने कि इच्छा जागृत कर दी थी| तो फिर उसके बाद मैंने भी धीरे धीरे करके 10th और12th कर लिया | फिर कुछ दिनों काम करके थोड़े पैसे बचा लिए और फिर एक ढाबा खोला था| धीरे-धीरे पूरा एक रेस्टोरेंट बना लिया है| अब तो आर्थिक स्थिति भी थोड़ी अच्छी हो गयी है|"
"अरे ये तो बड़ी अच्छी बात है| काफी ख़ुशी हुई जानकार की तुमने इतनी तरक्की कर ली है|"
"अरे ये सब आपकी देन है| अगर आपने मुझे पढाया न होता तो मैं अभी भी उसी कैंटीन पर होता| इसीलिए मैं भी शाम में पढाता हूँ और मैं तो अपने गाँव में एक स्कूल खोलने जा रहा हूँ | लोगों से मांगकर और कुछ अपना मिलाकर पैसा हो गया है | अगले महीने ही उसका उद्घाटन है|"
"अरे ये तो और भी अच्छी बात है | चलो कम से कम तुम और लोगों के लिए भी सोच रहे हो|"
"अरे जब आपने मेरे लए सोचा था तो मेरा भी तो फ़र्ज़ बनता है, कुछ करू | अच्छा भैया, मेरी ट्रेन आ गयी है और यहाँ स्टोपेज भी कम ही है| आप मुझे अपना नम्बर दे दीजिये, मैं आपको कॉल करूँगा| और कभी वापस आइये खड़गपुर |"
मैंने उसे अपना नम्बर दे दिया और वो विदा लेकर चला गया | मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आ गए | एक दिन ऐसे ही खेल खेल में आकर मैंने कैंटीन के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था | सही कहूं, मैं तो कभी इसको लेकर गंभीर नहीं था| मैंने तो ऐसे ही इन लोगों को पढ़ाना शुरू किया था | फिर धीरे धीरे मेरी भी रूचि बन गयी| धीरे-धीरे सब तो छोड़कर चले गए, पर सुब्रो आता रहा | जिस दिन मैं संस्थान छोड़ रहा था, मुझे याद है, उस दिन सुब्रो ने कहा था "आपने मुझे पढाया है और अब मुझे पढने में मजा आता है | मैं आगे पढूंगा| "| मैंने उसको अपना पता लिखकर दिया था और कहा था कि जब भी कोई जरूरत हो तो लिखना | लेकिन उसने कभी लिखा नहीं| शायद स्वाभिमान की वजह से कभी उसने ना कहा | और फिर मैं भी व्यस्त हो गया और भूल गया कि सुब्रो नाम का चरित्र मेरी जिंदगी में कभी कोई था| और आज अचानक उसे ऐसा देखकर इतनी ख़ुशी हो रही है कि जैसे उसकी सफलता मेरी सफलता है|
हम हमेशा संसाधनों और समस्याओं को दोष देते हैं और कभी किसी के लिए कुछ नहीं करते | मेरा एक छोटा सा अगंभीर सा प्रयास अगर किसी के जीवन में इतना परिवर्तन ला सकता है तो अगर सब थोडा- थोडा करें तो ये पूरा समाज ही परिवर्तित हो सकता है | सभी को घर बार छोड़कर समाझ सेवा के लिए निकलने की जरूरत नहीं है | आवश्यकता तो बस एक छोटी सी शुरुआत की है |
अब तो बस जल्दी से छुट्टी लेकर खड़गपुर जाने का इंतज़ार है | सुब्रो की असल जिंदगी की कहानी सुनने....