Tuesday, April 13, 2010

अब भागना है...

मैं जानता हूँ मुझे वापस यहीं आना है ,
इन्हीं बंद कमरों में , इन्हीं चारदिवारियो में बंद रहना है..
फिर भी मैं कुछ दिनों के लिए भागना चाहता हूँ,
इन सबसे दूर, इस भीड़, इस भागमभाग से....
केवल अपने लिए, अपने विचारों के लिए...
कुछ दिनों के ठहराव के लिए ......
अब भागना है, भले वो कुछ ही दिनों के लिए ही क्यूँ न हो.. ..

Thursday, April 1, 2010

दो बाल और


"एक चुटकी सिन्दूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू, ईश्वर का आशीर्वाद होता है.....एक चुटकी सिन्दूर, सुहागिन के सर का ताज होता है.....एक चुटकी सिन्दूर, हर औरत का ख्वाब होता है.... एक चुटकी सिन्दूर..... "

आप शीर्षक पढ़ कर सोच रहे होंगे कि यह क्या है? शायद आपको यह लगा होगा कि मिश्राजी (जो नहीं जानते यह जान ले की बचपन से ही मेरे अधिकांश मित्रों ने मुझे इसी नाम से संबोधित किया है) का दिमाग सठिया गया है या फिर खड़गपुर की इस बेहाल गर्मी ने इन्हें पागल कर दिया है| किन्तु मैं आपको आश्वासन देता हूँ मेरे इस लेख को लिखने के पीछे इनमे से कोई भी कारण सत्य नहीं है तथा यह मैं अपने पुरे होश-हवाश में रहते हुए लिख रहा हूँ | आप भी मेरी भावनाओं को समझ जाइएगा किन्तु वर्तमान के लिए आप इस शीर्षक को एवं मुझे बर्दाश्त कीजिये तथा इस लेख को पढना जारी रखिये |
हुआ यूं कि इस बार शंकरपुर (जिससे सम्बंधित छायाचित्र आप मेरे फेसबूक अकाउंट पर देख सकते हैं) की ट्रीट पर हुई एक छोटे से एक्स्टेम्पोर प्रतियोगिता ने मुझे इसे लिखने हेतु प्रोत्साहित किया तथा इस बार भी समस्त आवाज़ टीम की हौसलाहाफजाई के लिए मैं उनका धन्यवाद् करता हूँ | जैसा कि मैंने आपको बताया है- मेरे अधिकांश मित्र मुझे मिश्राजी कि नाम से संबोधित करते हैं किन्तु वर्त्तमान में मेरे गिरते बालों तथा सेकंड इयर में पुरे वर्ष टकला रहने कि वजह से लोग मुझे यदा-कदा टकला शब्द से भी संबोधित करते हैं | अब इस महान कार्य में आवाज़ टीम कहां पीछे रहने वाली थी तो एक्स्टेम्पोर प्रतियोगिता में मुझे जो विषय दिया गया, वह था "दो बाल और" |
अब आप ही बताइए, इन दो बालों की कीमत हम जैसों से अच्छा कौन समझ सकता है| हम जैसे, जिनके सिरों पर बाल कुछ दिनों के लिए ही बचे हैं, वे ही समझ सकते हैं कि ये दो बाल इस दुनिया में कितनी अहमियत रखते हैं| जब भी शैम्पू करते वक़्त दो बाल गिर जाते हैं तो मुझे कितना कष्ट होता यह तो मैं ही जनता हूँ और मेरे मुंह से अनायास ही निकल जाता है "दो बाल और" | ये वही दो बाल हैं जो मुझे, आपको गंजा बनने से रोक सकते हैं | किन्तु औरों को यह कौन बताये कि ये "दो बाल और" मुझे कितना कष्ट प्रदान करता है | इस विषय पर मुझे ॐ-शांति-ॐ फिल्म का "एक चुटकी सिंदूर" वाला डायलौग याद आता है | हमारी-आपकी सबकी फेवरेट अभिनेत्री "दीपिका पादुकोण" ने जब यह कहा था तो थियेटर कई लोग हँसे थे, कई लोग रोये थे तथा कुछ महिलाएं तो इतनी गंभीरता से रो रही थी कि मानो वह अन्याय उन्हीं के साथ हो रहा हो | खैर जो भी हो अहम् बात यह है कम से कम कोई तो था जो उन सारी हंसी-ठहाको के पीछे उस परदे की अभिनेत्री के दर्द को समझ रहा था (विशेषतः वहां मौजूद वे महिलाएं) | किन्तु विडम्बना देखिये मेरे "दो बाल और" के पीछे छुपे दर्द को किसी ने नहीं समझा और सब के सब हँसते रहे | लेकिन अब कर भी क्या सकते हैं,ये दुनिया बड़ी जालिम है |
किन्तु मैं कहना चाहूँगा कि खैर जो भी हो, मेरे अन्दर अभी भी उम्मीद बाकी है कि वे दो बाल आयेंगे और जरूर आयेंगे क्यूंकि उसी फिल्म में एक और डायलौग था....

"इतनी शिद्दत से मैंने तुम्हें पाने की कोशिश की है कि हर जर्रे ने मुझे तुमसे मिलाने कि साजिश की है, कहते हैं.... अगर किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है...... हमारी फिल्मों की तरह एंड में सब ठीक हो जाता है.... और अगर ठीक न हो तो वो दी एंड नहीं है दोस्तों.... पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त... अभी दो बाल आने बाकी है मेरे दोस्त "