Wednesday, January 25, 2012

मिश्राजी की चिट्ठियां - हमारा राष्ट्रीय अवकाश गणतंत्र दिवस


प्यारे पाठकों,
सबसे पहले आप सभी को मिश्राजी का प्रणाम !

आज 26 जनवरी है तो सोचा आपको एक चिट्ठी लिखी जाए | वैसे तो 26 जनवरी  को हिंदी में गणतंत्र दिवस भी कहते हैं किन्तु अगर मैं इन शब्दों का प्रयोग करूँ तो कुछ पाठकों को शायद समझने में कष्ट होगा और फिर वह चिट्ठी ही क्या जो पढने वाले तक अपनी बात ना पहुंचा पाए |  वैसे तो आजकल अपना गणतंत्र केवल शब्दों के खेल में ही फंसा हुआ है फिर भी मैं निवेदन करूँगा की  आप शब्दों को छोढ़कर भावनाओं पर ध्यान केन्द्रित करें | 
वैसे आप भी सोच रहे होंगे इस ईमेल, फेसबुक और SMS के ज़माने में मिश्राजी को चिट्ठी लिखने की क्या सूझी ? हालाँकि इसका कोई स्पष्ट कारण तो मेरे पास नहीं है फिर भी मुझे लगा की अगर बात पुराने तरीके से कही जाए तो हो सकता है लोगों को ज्यादा समझ में आये | वैसे भी आजकल जब टाइम्स ऑफ़ इंडिया की बातें गंभीरता से लेने लायक नहीं हैं तो फेसबुक की क्या मजाल और ईमेल का तो क्या ही कहना...आधे से ज्यादा ईमेल तो हम पढ़ते भी नहीं हैं | खैर चलिए, जब हमने चिट्ठी लिख दी है तो उम्मीद करूँगा आप पढ़ भी लेंगे | वैसे चिट्ठी लिखने का एक कारण यह भी है की पता नहीं हमारे गणतंत्र में फेसबुक की हालत चीन जैसी कब हो जाए और मेरी बात को किसी संप्रदाय, समूह या फिर व्यक्ति विशेष के विरूद्ध साजिश का हिस्सा बता दिया जाए |  
वैसे आज सुबह के समाचार पत्रों में आपने देशभक्ति की कई सारे बातें पढ़ी होंगी...चाहे जो हो जाए, आज के दिन हर समाचार पत्र को देश और इसके कर्णधारों की जरूर याद आती है और मुख्य पृष्ठ पर वास्तविक प्रेम की जगह देशप्रेम दिखाई देता है... परन्तु सच कहूं तो ये सब बेमानी है | आज के दौर में देशप्रेम की जरूरत ही क्या है ? वैसे भी कहते हैं ना... 'हमारे पूर्वज मर गए हमें आज़ादी दिलाने में और हम मरे जा रहे हैं प्रेमिका की बाहों में आज़ादी लुटाने में ' | वैसे भी समय नहीं गंवाना चाहिए..इस प्रेम में एक-एक दिन कीमती होता है तो ऐसे में अगर हमने एक दिन गँवा दिया तो हो सकता है कल हम अपने आपको अपनी प्रेमिका के लिए रोता पाएं | और देश का क्या है.... वो कल भी था, आज भी है और कल भी यहीं रहेगा |  एक बात जो मुझे और ज्यादा कचौटती है कि कुछ लोग अचानक से आज के दिन समाचार पत्र और टीवी चैनलों पर प्रकट हो जाते हैं | देश का लोखा-जोखा प्रस्तुत करने लगते हैं...कुछ देश कि दुर्दशा पर रोने लगते हैं | अब बताइए...भला यह भी कोई बात हुई..साल भर गायब रहते हैं और एक दिन रोने पहुँच जाते हैं | इन्हें मालूम ही नहीं कि देश इतनी तरक्की कर रहा है...हर व्यक्ति को रोजगार, हर भूखे को भोजन, हर बच्चे को शिक्षा के क़ानून लागूं हैं हमारे गणतंत्र में...और भई इतना बड़ा देश है, इतनी विभिन्नताएं...दो-चार सौ साल तो लगेंगे ही इन समस्याओं को दूर होने में | यह भी एक संभावना है कि दो-चार सौ साल तक यह गणतंत्र ना रहे तब भी समस्याएं तो ख़त्म हो जाएँगी ना...जब गणतंत्र ही नहीं हैं तो कैसी समस्याएं | और तो और आज के दिन एका बड़ा ही विचित्र अनुभव होता है...मैं समझ नहीं पाता...कुछ लोगों को अचानक से जोश आ जाएगा और मुझे आमंत्रित कर लेंगे किसी ना किसी चर्चा में | और चर्चा का विषय भी बड़ा अजीब सा होता है...मुझे तो समझ में ही नहीं आता |  अब आप ही बताइए... कैटरिना कैफ और सलमान खान के अफेयर की चर्चा हो तो मजा भी आये...ये बाल विवाह, खाप पंचायत, भ्रष्टाचार, चुनाव सुधार, मानवाधिकार जैसे शब्द किसी को समझ में भी आते हैं | आज एक दिन बड़ी मुश्किल से छुट्टी मिलती है और मुझे जैसे प्रतिभावान युवा का भी समय ऐसे बेकार कि चर्चाओं से बर्बाद कर देते हैं | कुछ लोग तो और भी हैं...अचानक से 'दर्दे-डिस्को' की जगह 'ऐ मेरे वतन के लोगों ' को बजाने लगते हैं...भई मुझे इस कर्ण भेदन से छुटकारा चाहिए | 

मैंने कईयों को अपना कष्ट समझाने की कोशिश की है किन्तु कोई समझने को तैयार ही नहीं हैं | हार मानकर मैंने सोचा चिट्ठी ही लिखी जाए | जब साल भर हम तकिया तानकर सोते हैं तो आज राष्ट्रीय अवकाश के दिन ये सब बातें करके क्यूँ नींद ख़राब की जाए | आज तो हमें और भी मजे से सोना चाहिए...बल्कि मैं तो कहता हूँ अगर काम के भागम भाग में कोई फिल्म छुट गयी हो तो उसे भी निपटा लीजिये | और देखिये ये जो कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी चिल्ला रहे हैं..इनकी बातों में ना पड़ जाइएगा..आपकी छुट्ठी बर्बाद हो जायेगी | अरे देश कहीं भागे नहीं जा रहा है....मजे से चले जा रहा है बल्कि मैं तो कहूँगा रेंग रहा है....अगर हम कहीं पीछे छुट भी गए तो दौड़ के पकड़ लेंगे....अपना ही तो देश है .. | आइये हम और आप मिलकर इस राष्ट्रीय अवकाश का सदुपयोग किया जाए और गणतंत्र दिवस का असली आनंद उठाया जाए |

सभी को राष्ट्रीय अवकाश की ढेरों शुभकामनाएं ! 

आपका,
मिश्राजी !