Friday, August 19, 2011

तू है तो.....

तू है तो इक आशा है,
तू है तो उम्मीद की एक किरण दिखती है
तू है तो विश्वास है कि कल फिर आएगा
तू है तो मेरी भविष्य की उम्मीदें जीती हैं |

तू है तो मुझे इक मंजिल दिखती है,
तू है तो ये कुछ कर गुजरने ज़ज्बा होता है,
तू है तो मेरे ये सपने जन्म लेते हैं,
तू है तो ये सफलता की चाहत पनपती है |

तू है तो ये भावनाएं जन्म लेती हैं
तू है तो मेरी कल्पना उड़ान भरती है ,
तू है तो इन शब्दों की प्रेरणा मिलती है,
तू है तो इन शब्दों से एक कविता निकलती है |

Tuesday, July 26, 2011

ऐ-हुक्म के आकाओं.....

ऐ-हुक्म के आकाओं, मेरी इक बात तुम सुन लो ;
इक आग उठने वाली है, हो सके तो बच लो |

ये सिर-फिरी मनमानियां, चल ना पाएंगी इस क़दर ;
हमारे सब्र को न तोड़ो, तुम अब गिरोगे जमीन पर |

इन आँधियों ने कितनों के, मिटा दिए हैं नामों-निशां,
अभी भी वक़्त है सम्हल लो, न तबाह करो ये गुलिस्तां |

इक नसीहत है तुम्हें, इतिहास के पन्नों को पलट लो ;
इन्कलाब की आवाज़ गूंज रही, इन इशारों को समझ लो |


Sunday, July 17, 2011

मैं चाहता हूँ...

हवा की स्वच्छन्द्ता चाहता हूँ,
लहरों की चंचलता चाहता हूँ, 
इस असीम आकाश की गंभीरता चाहता हूँ,
क्षितिज जैसा विस्तार चाहता हूँ |
पेड़ पर लिपटी बेल का उत्साह चाहता हूँ,
सागर की गहराई चाहता हूँ, 
चांदनी की शीतलता चाहता हूँ,
और इस दुनिया में बस इंसानियत की पहचान चाहता हूँ |  

Thursday, May 26, 2011

प्यार में ज़िन्दगी बिताइए....

इधर से जो गुजर गयी, उसी पे हम मचल गए,
जो कुछ न हो सका तो फिर करीब से निकल गए |
कुछ पल का दुःख फिर मस्त हो हम चल लिए,
नए चेहरों की तलाश में फिर हम बढ़ लिए | 

सभी हसीन सभी जवान किसी पे दिल को हारिए,
जब किसी पे दिल आ जाये तो उसके लिए फाईट मारिये |
दिले-ज़ज्बात इज़हार करने में कभी ना हिचकिचाईये,
इन्कार का डर निकाल कर प्रेम पथ पर बढ़ते जाइए |

अगर सफल ना हुए तो तनिक भी ना घबराईये,
दिल को सम्हालिए, और फिर से खोज में लग जाईये |
दुनिया में हसीनों की कमी नहीं, दिल को ये समझाइये,
रोने धोने में में क्या रखा है, प्यार में ज़िन्दगी बिताइए |

यह कविता मेरे और मेरे प्रिय मित्र शैलेष अग्रवाल के सम्मिलित प्रयास का परिणाम है |  

Sunday, May 22, 2011

कुछ पंक्तियाँ...

नींद आती ही है किसको !
जैसे ही मैं अपने कमरे कि तरफ बढ़ा तो किसी ने कहा "शुभरात्रि!!"
अब इसका जवाब मैं क्या ही दूं, यहाँ नींद आती ही है किसको, यहाँ तो सब आराम करते हैं | 
आराम करते हैं ताकि ये शरीर जवाब ना दे जाए, ये अंग काम करते रहे|
चैन से सोये तो ना जाने कितना समय हो गया, अब तो वो सुनहरे अतीत की यादें लगती हैं | 
अब तो सुबह कि ताज़ी किरणे भी इस सतत जीवन प्रवाह में एक मोड़ की तरह लगती हैं,
अब तो सपने में भी ज़िन्दगी दौड़ती रहती है, हम दौड़ते रहते हैं  |




पंक्तियाँ!
आज चिर-परिचित पन्नों में कुछ पंक्तियों को ढूंढने की कोशिश कर रहा था,
पता नहीं वो पंक्तियाँ कहाँ खो सी गयी हैं ?
अक्षर तो जाने पहचाने से लगते हैं, लेकिन वो पंक्तियाँ नहीं मिल रही....
या उन्हें मैं पहचान नहीं पा रहा...
कहीं ऐसा तो नहीं इस बदलते परिदृश्य में...उन पंक्तियों के मायने बदल गए हैं..
या शायद परिस्थितियां बदल गयी हैं ..और उन पुरानी पंक्तियों में मैं नए अर्थ ढूँढने की कोशिश कर रहा हूँ...
कहीं ऐसा तो नहीं इस परिवर्तनशील समाज में, मेरा इन पंक्तियों को ढूंढना ही अब प्रासंगिक ना रहा..

जो भी हो, उन किताबों के पन्ने पलटने का यह क्रम जारी है ...
उन पंक्तियों की, उन मायनों की तलाश जारी है...




क्यूँ डरते हो इन परेशानियों से?
क्यूँ डरते हो इन परेशानियों से,
क्यूँ डरते हो इन रास्तों से ?
क्यूँ डरते हो आने वाली चुनौतियों से?
क्यूँ घबराते हो कल के अनजानेपन से ?

अगर ये परेशानियां नहीं होती, तो क्या यही तुम्हारी मंजिल होती ?
और अगर ये रास्ते ना होते तो, तुम्हें कौन अपनी मंजिल तक पहुंचाता?
ये चुनौतियां ही तो हैं जो तुम्हारे लक्ष्य के महत्व को बताती है,  
और ये कल का अनजानापन ही तो है जिसमे एक आशा है, एक अप्रत्याशित ख़ुशी है |




भूत-भविष्य और वर्तमान....
कोई भूत काल की यादों में जीना चाहता है, तो किसी के लिए भविष्य की आशाएं ही जीने का सहारा हैं|  कई हैं जो वर्तमान कि वास्तविकताओं को ही ज़िन्दगी समझते  हैं | उनके लिए ये भूत-भविष्य की बातें बेमानी हैं |
लेकिन मुझ जैसे भी हैं...जो जीते हैं, भूत की सुनहरी यादों के बीच वर्तमान की वास्तविकताओं का सामना करते हुए, भविष्य की  अनगिनत आशाओं साथ!






Saturday, April 23, 2011

दुःख नहीं कि हमें मन चाहे दृश्य ना मिले...


आज सोचता हूँ तो,
मझधार में फंसी कश्ती की तरह,
कभी किनारा ना मिला
हाथ में फंसे रेत की तरह,
सहारा ना मिला |

समय को पकड़ने की,
 ना जाने, कितनी ही कोशिशें कर डाली |
स्तिथियों को बदलने की,
ना जाने, कितनी ही मिन्नतें कर डाली |

फिर भी,
दुःख नहीं कि, हर कदम गलत ही दिखे,
दुःख इस बात का है कि,
हमने देखने कि कोशिशें कर डालीं| 
दुःख नहीं कि, हमें मन चाहे दृश्य ना मिले ,
दुःख इस बात का है कि,
जो भी मिले, हमने उनकी बेईज्ज़ती कर डाली | 

Tuesday, January 25, 2011

गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर......



मैं निराश नहीं हूँ, मैं हताश नहीं हूँ | 

मैं मानता हूँ कि..... गलतियां हुईं हैं,
मैं मानता हूँ कि..... सब कुछ अच्छा नहीं है;
मैं मानता हूँ..... सुधार की आवश्यकता है |

किन्तु हमारे विखंडन का जो सपना देखते हैं,
मैं उनसे यह कहना चाहता हूँ...
ये उनकी एक कल्पना है....
केवल कोरी  कल्पना है,
जिसका यथार्थ से कोई सम्बन्ध नहीं है;
जिसका यथार्थ में कोई आधार नहीं है |


इस गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर आप सबसे कहना चाहता हूँ......

विकास की प्रक्रिया में जो असफलताएं हमें मिली हैं ;
उसे स्थायी ना समझो, उसे ही अपना भाग्य ना समझो |
याद रखो तुम किस संस्कृति के वाहक हो;
याद रखो तुम किस परंपरा के निर्वाहक हो |
याद रखो उन त्यागों को, याद रखो अमर बलिदानों को |

तो आओ, ये निराशा और किन्किर्त्व्यमुड़ता का आवरण उखाड़ फेंकते हैं...
जनमानस में आशा का प्रवाह करते हैं, निर्माण का प्रयत्न करते हैं, 
देश के निर्माण में...हम अपना योगदान करते हैं |

जय हिंद!!!!!!!