Wednesday, April 20, 2016

चंद पंक्तियाँ !

खुद को जानना ही काफी होता तो क्या होता,
दूसरों को समझना ही काफी होता तो क्या होता,
बस यूँ ही बोलना ही काफी होता तो क्या होता मगर,
सही वक़्त पे बातों को अगर समझा देते, तो क्या वो काफी होता?
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इक अहसास था जिसे समझ ना पाया,
समझा भी तो शायद समझा न पाया
सुना है-वास्तविकताओं और तर्क से चलती है ज़िन्दगी
तो फिर इस अहसास को क्युं दबा न पाया?
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थोड़ा समय देते तो मैं समझ ही जाता,
इन बातों को भुला भी पाता ,
हर जवाब इतना सीधा नहीं होता
कई बार वक्त ही हमें समझा है पाता ।
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मंजिलें तो मिल ही जाएंगी,
जरूरी है.... घर से निकलना ।
हर फासला क्यों तुम ही तय करो,
जरूरी है...दो कदम तुम चलो , दो कदम हमारा चलना।
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कभी तू भी तो दो कदम चल
कभी तू भी तो हाथ बढ़ा,
कभी तू भी तो कुछ कह,
ऐसा क्या अहम है तेरा,
कभी तू भी तो लग कि तू भी एक इंसान है |
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हर कदम मैं ही क्यूँ चलूँ ,
तुम भी तो कुछ कहो,
जब सफर साथ का है तो,
बाधाएं तुम भी तो हल करो ।
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पिंजरे से दूर भागना तो तेरी फितरत है, 
लेकिन इतना भी उन्मुक्त न हो जा, कि खुला आसमान भी पिंजरा लगने लगे।