Thursday, May 26, 2011

प्यार में ज़िन्दगी बिताइए....

इधर से जो गुजर गयी, उसी पे हम मचल गए,
जो कुछ न हो सका तो फिर करीब से निकल गए |
कुछ पल का दुःख फिर मस्त हो हम चल लिए,
नए चेहरों की तलाश में फिर हम बढ़ लिए | 

सभी हसीन सभी जवान किसी पे दिल को हारिए,
जब किसी पे दिल आ जाये तो उसके लिए फाईट मारिये |
दिले-ज़ज्बात इज़हार करने में कभी ना हिचकिचाईये,
इन्कार का डर निकाल कर प्रेम पथ पर बढ़ते जाइए |

अगर सफल ना हुए तो तनिक भी ना घबराईये,
दिल को सम्हालिए, और फिर से खोज में लग जाईये |
दुनिया में हसीनों की कमी नहीं, दिल को ये समझाइये,
रोने धोने में में क्या रखा है, प्यार में ज़िन्दगी बिताइए |

यह कविता मेरे और मेरे प्रिय मित्र शैलेष अग्रवाल के सम्मिलित प्रयास का परिणाम है |  

Sunday, May 22, 2011

कुछ पंक्तियाँ...

नींद आती ही है किसको !
जैसे ही मैं अपने कमरे कि तरफ बढ़ा तो किसी ने कहा "शुभरात्रि!!"
अब इसका जवाब मैं क्या ही दूं, यहाँ नींद आती ही है किसको, यहाँ तो सब आराम करते हैं | 
आराम करते हैं ताकि ये शरीर जवाब ना दे जाए, ये अंग काम करते रहे|
चैन से सोये तो ना जाने कितना समय हो गया, अब तो वो सुनहरे अतीत की यादें लगती हैं | 
अब तो सुबह कि ताज़ी किरणे भी इस सतत जीवन प्रवाह में एक मोड़ की तरह लगती हैं,
अब तो सपने में भी ज़िन्दगी दौड़ती रहती है, हम दौड़ते रहते हैं  |




पंक्तियाँ!
आज चिर-परिचित पन्नों में कुछ पंक्तियों को ढूंढने की कोशिश कर रहा था,
पता नहीं वो पंक्तियाँ कहाँ खो सी गयी हैं ?
अक्षर तो जाने पहचाने से लगते हैं, लेकिन वो पंक्तियाँ नहीं मिल रही....
या उन्हें मैं पहचान नहीं पा रहा...
कहीं ऐसा तो नहीं इस बदलते परिदृश्य में...उन पंक्तियों के मायने बदल गए हैं..
या शायद परिस्थितियां बदल गयी हैं ..और उन पुरानी पंक्तियों में मैं नए अर्थ ढूँढने की कोशिश कर रहा हूँ...
कहीं ऐसा तो नहीं इस परिवर्तनशील समाज में, मेरा इन पंक्तियों को ढूंढना ही अब प्रासंगिक ना रहा..

जो भी हो, उन किताबों के पन्ने पलटने का यह क्रम जारी है ...
उन पंक्तियों की, उन मायनों की तलाश जारी है...




क्यूँ डरते हो इन परेशानियों से?
क्यूँ डरते हो इन परेशानियों से,
क्यूँ डरते हो इन रास्तों से ?
क्यूँ डरते हो आने वाली चुनौतियों से?
क्यूँ घबराते हो कल के अनजानेपन से ?

अगर ये परेशानियां नहीं होती, तो क्या यही तुम्हारी मंजिल होती ?
और अगर ये रास्ते ना होते तो, तुम्हें कौन अपनी मंजिल तक पहुंचाता?
ये चुनौतियां ही तो हैं जो तुम्हारे लक्ष्य के महत्व को बताती है,  
और ये कल का अनजानापन ही तो है जिसमे एक आशा है, एक अप्रत्याशित ख़ुशी है |




भूत-भविष्य और वर्तमान....
कोई भूत काल की यादों में जीना चाहता है, तो किसी के लिए भविष्य की आशाएं ही जीने का सहारा हैं|  कई हैं जो वर्तमान कि वास्तविकताओं को ही ज़िन्दगी समझते  हैं | उनके लिए ये भूत-भविष्य की बातें बेमानी हैं |
लेकिन मुझ जैसे भी हैं...जो जीते हैं, भूत की सुनहरी यादों के बीच वर्तमान की वास्तविकताओं का सामना करते हुए, भविष्य की  अनगिनत आशाओं साथ!