कौन कमबख्त कहता है कि,
ज़िन्दगी धोखा नहीं दे पाती है।
मौत की वफ़ा के सामने,
ज़िन्दगी हमेशा, बेवफाई निभाती है ।ज़िन्दगी धोखा नहीं दे पाती है।
मौत की वफ़ा के सामने,
इस क्षणभंगुर जीवन को देखकर,
मन मेरा उचट जाता है ।
यह संसार कुछ भी नहीं,
बस एक मोह और माया है ।
शाश्वत तो केवल मृत्यु है ;
हर पल,हर जगह....बस मौत का इक साया है ।
लोग कहते हैं -
चार दिन कि ज़िन्दगी है;
हँस लो-गा लो,दिल से जी लो ।
किंतु मैं,
भ्रम में जी नहीं सकता हूँ;
चारों तरफ़ कि नश्वरता को देखकर भी,
चेहरे पर झूठी खुशी, ला नहीं सकता हूँ ।
कुछ कहते हैं,
यह तो पागल है, यह सनकी है ।
कुछ के लिए मैं एक बेकार कवि हूँ...
किंतु मैं कर भी क्या सकता हूँ...
सत्य को देखकर उससे मुहं मोड़ नहीं सकता ।
घुट-घुट कर जी नहीं सकता ।
मुझे किसी के कहने या बोलने की परवाह नहीं ,
समाज के इन उल्लुओं के साथ जीने की चाह नहीं ,
क्योंकि, मैं जानता हूँ
जब मौत दरवाजे पर दस्तक देगी ,
तो ये सब के सब रोयेंगे,गिरागिरायेंगे....
और हम जैसे पागल मौत को, खुशी से गले लगायेंगे ।
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