हम चल रहे हैं, चलते रहेंगे |
देश का विकास भी हो ही रहा है,
और उम्मीद है, यह होते भी रहेगा |
किन्तु प्रश्न यह है कि,
कब तक, आखिर कब तक
सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा ?
कब तक, यह काम चलाने की प्रवृत्ति चलती रहेगी,
कब तक, यह जुगाड़ भिड़ाने की प्रवृत्ति चलती रहेगी,
कब तक आकाओं की जी-हुजूरी हमसे होती रहेगी,
कब तक, आखिर कब तक, हमारी चुप्पी ऐसे ही बनी रहेगी |
कब तक सियासत के चंद धूर्त खिलाडी, हमें मोहरों जैसे पीटते रहेंगे,
कब तक और आखिर कब तक ............
हम खून का यह कड़वा घूंट पीकर भी सब कुछ सहते रहेंगे |
मैं बस इस कब तक का उत्तर जानना चाहता हूँ ...बस इस कब तक का.....
क्यूंकि जिस दिन इस कब तक का हमें उत्तर मिल गया,
उस दिन यूँ समझिए हमारी सारी समस्यों का हल निकल गया |
उस दिन हमारे आकाओं की जडें हिल जायेंगी ,
उस दिन शतरंज के सारे खेल बिगड़ जायेंगे
और हम जैसों के कुछ शब्द बच जायेंगे.....
और हम जैसों के कुछ शब्द बच जायेंगे |
4 comments:
kafi achhi kavita hai....superlike !!!
JAB TAK AAP AUR HUM APNE HAANTHON MEIN KAMAN NAHI SAMBHAAL LETE.......!!!!
sahi hai.. thoughts are well arranged and directly told. sumtimes try to write things in indirect ways
आपने अपनी इस कविता के माध्यम से हर आम हिन्दुस्तानी की मनोव्यथा को बखूबी बयाँ किया है .....सुन्दर रचना .....
कभी फुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आइयेगा -
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