बचपन की सीखें
पढ़ी हुई चंद पंक्तियाँ, आप भुला नहीं पाते हो
ऐसा ही कुछ था,
मैंने पढ़ा था - मानव का जीवन विनिमय की ऐसी तुला है जिसमे कोई पासंग नहीं है !
लगता है.. मैंने ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया
जिंदगी भर इसे संतुलित करने का प्रयास करता रहा
सोचा कम से कम सच्चा मानव तो बन पाउँगा!
शायद यहीं गलती हो गयी, असली मानव तो वो है,
जो तुला को किसी एक तरफ झुका सके,
कुछ ना कुछ किसी ना किसी को बेच सके, अक्सरहां वास्तविकता से ज्यादा
और सबसे ख़ास बात तो ये है-यहाँ सब बिक सकता है,
इंसान कर्म भावनाएं सपनें धर्म संस्कृति और आध्यात्म भी !
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