
कुछ लिखने की इच्छा हो रही है, किन्तु पता नहीं क्या लिखा जाए? मुझे जरा सा भी अनुमान नहीं है कि मैं क्या लिखना चाहता हूँ और मैं क्या लिखूंगा | फिर भी मैं लिखने बैठ गया | और अब प्रश्न है कि क्या लिखा जाए और कैसे लिखा जाए?
लेकिन अगर गौर किया जाए इन प्रश्नों से पहले एक मूल प्रश्न यह है कि मैं लिखने बैठा ही क्यूँ ? जब कोई विषय ही नहीं, कोई योजना ही नहीं तो मैं बैठा ही क्यूँ ? बिना किसी तैयारी कि जंगे-मैंदान में उतरना क्या उचित है ? कहते हैं जंग जीतने के दो तरीके होते हैं-- पहला यह कि आप पूरी तैयारी और योजना के साथ मैदान में उतरे या फिर आप हौसले के साथ उतर जाए और फिर "जो होगा देखा जायेगा वाली भावना" ही आपको विजयी बनवाएगी | हालांकि लिखना जंग में उतरने जैसा तो नहीं है, फिर भी बिना किसी योजना के आज कि इस नियोजित (planned) दुनिया में कुछ भी करना शायद असंभव ही है | बच्चे के पैदा होने से पहले ही माँ-बाप उसके स्कूल का बंदोबस्त करते हैं, जरा सा बड़ा होते ही उसके कैरियर की योजना बन जाती है, फिर नौकरी की योजना और फिर तो जीवन स्वयं ही नियोजित हो जाता है | कभी-कभी तो लगता है कि लोगों के जीवन में से आश्चर्य (surprise element) ख़त्म होते जा रहा है | हर कोई एक सुनियोजित (well planned) जीवन जी रहा है | लोगों ने अपने मन, अपनी इच्छाओं को दबाकर जीना सीख लिया है | वह स्वच्छंद मनुष्य जो सबकुछ भुलाकर अपने लिए, अपने मन की आतंरिक ख़ुशी के लिए जीता था, लगता है कि विलुप्तप्राय प्राणी (endangered species) की श्रेणी में आ गया है | शायद आश्चर्य और उसके साथ जुडी अनिश्च्चित्ता में जो एक डर था, आनंद था, हम उसे भूल गए हैं | दूसरों के बनाये रास्ते, उनकी बनायी हुई उपलब्धियों के पीछे भागे जा रहे हैं ; भूलते जा रहे हैं कि हम क्या चाहते हैं, हमारा मन क्या चाहता है |
लेकिन गनीमत यह है कि मेरे लिखने के साथ ऐसा नहीं है | मैंने अपने लेखन को नियोजित नहीं किया है | मैं हर बार लिखने के पहले यह नहीं सोचता है कि क्या लिखना है कैसे लिखना है? जब भी मन किया शुरू हो गया और बस अपने मन से लिखते गया | जैसा भी लिखा, मुझे नहीं मालूम किन्तु मैं यह कह सकता हूँ कम से कम मैंने अपने मन से लिखा, जो मेरी भावनाएं थी उन्हीं ने शब्दों का रूप लिया और मुझे लगता है कि शायद यही लेखन है | मेरे हिसाब से आप कैसा लिखते हो, क्या लिखते हो, इन सब से कहीं ज्यादा यह महत्वपूर्ण है कि आप मन से लिखो | जब आप मन से लिखते हो तभी आप पाठकों तक पहुँच पाते हो और शायद यही सफल लेखकों की सफलता का राज है | किन्तु जो भी हो, बस आप लिखिए, मन से लिखिए | बहुत सारी योजनायें आपकी भावनाओं का क़त्ल कर देती हैं और फिर न तो लिखने में आनंद है न ही जीवन में | इस नियोजन (प्लानिंग) के बंधन से मुक्त होइए..... शायद तभी आप जीवन का सच्चा आनंद ले सकते हैं |
5 comments:
accha likha hai bhai
badhiya.....bina kuch likhe hi kafi kuch kah gaye.....phir bhi kuch armaan is dil mein rah gaye...
अच्छा लिखा है. निश्चय ही, बिना नियोजन किये कुछ करने का मज़ा ही अलग होता है. आप कुछ भी आशा नहीं रखते अपने आप से, और ऐसे में जो भी होता है, वो निराश नहीं करता, क्यूंकि आपने अपेक्षा ही नहीं की थी कुछ भी. तो जो भी मिला, जितना भी मिला, सब बोनस ही हुआ ना?
हाँ आलोक, सब बोनस ही हुआ तथा नियोजन न करने की वजह से जो कार्य के पहले की चिंता से मुक्ति मिलती है, वह भी इस बोनस को बढाती ही है |
gud one.. padhkar accha laga.. :)
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