हमने भी अब देख लिया है देश के कर्णधारों को,
पढ़े-लिखे अनपढो को, बुद्धिजीवियों के विचारों को |
हर जगह ये राग अलापते,
राजनीति विकृत है, तंत्र बिगड़ रहा है,
आम आदमी परेशानियों के बोझ से मर रहा है |
राजनीति को गन्दा दलदल कहना इनकी आदत है,
अपने को सफेदपोश बताकर,
जिम्मेदारियों से बचने में इनको महारत है |
इनके अनुसार,
ये सीधा साधा जीवन व्यतीत करते हैं,
ये हर प्रकार की राजनीति और भ्रष्टाचार से दूर रहते हैं,
ये विचारवान और विवेकशील प्राणी हैं,
ये असत्य के शत्रु और सत्य के पुजारी हैं|
किन्तु मैं तो कहता हूँ,
ये शुतुरमुर्ग हैं |
अपनी गलतफहमियो में मशगूल हैं, सच्चाई से कोसों दूर हैं |
बस सिर को रेत में घुसाकर उसी को सत्य मान लेते हैं,
अपने आसपास की गन्दगी देख ही नहीं पाते हैं |
देश की राजनीति को दिन भर गाली देने वाले इन बुद्धिजीवियों को,
अपने आस पास की राजनीति दिखती ही नहीं,
उसमे जो कूटनीति मचती है, वो दिखती ही नहीं |
जाति के नाम पर वोट पड़ना गलत है, महापाप है,
हॉल के नाम पर सबकुछ करना, हॉल धर्म है; जन कल्याण है |
इनके अनुसार जनता जागरूक नहीं हैं, देश में वोट ख़रीदे जाते हैं,
यहाँ पर इलेक्शन के दिन चिट पकडाए जाते हैं |
और फिर लोग परिवर्तन की बात करते हैं,
और मुलायम की जगह मायावती का समर्थन करते हैं |
और इसपर ये दावा करते हैं,
ये पढ़े लिखे लोग हैं,
बुद्धिजीवी हैं, देश के कर्णधार हैं |
10 comments:
some of ur thinking matches with me.... had i been a poet... i would have loved to write such a poem...
still.... a very good one asu :D
yeah ... I agree with Varun.. I am a poet and I wd also love to write one like it
shi me meri hindi me abhivyakti agar ap jaise ho to maza aajaye bole to....MACHAO KAVITA ....!!
good one!! keep it up!!!
nice yaar.... elections ke pehle thoda likha hota..
machaax dude.
I want this poem to be published in awaaaz and other magazine
दरअसल मुद्दा तो यही है की कैसे किया जाए इसे...........पत्रकार दो चार पंक्तियाँ लिख कर ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं, नेता दो चार भाषणों को देकर, लोकसेवक कुछ पर्चियाँ बढ़ाकर, तो बदलाव लाए कौन.......आप और हम खुद, खुद में ऐसे उलझे पड़े हैं की ना आरंभ दिखता है और ना अंत | हल बस एक है.......
"जब तक ना बदलोगे खुद को
जमाने को क्या परवाह है,
मियाँ, समझो खुद को जमाना
जमाने में रखा क्या है |"
वैसे कविता अच्छी है पर लय के मोर्चे पर थोड़ी निराश करती है, पर विचारों की अभिव्यक्ति सराहनीय है|
आगे के लिए हार्दिक शुभकामनायें|
macha diye guru
kash election se pehle likha hota
awesome
WAH !! KYA BAAT HAI..
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