सोचा कि कुछ लिखूं,
इन बीतें पलों को कुछ शब्दों में बयाँ करूँ,
इन नए अनुभवों को शब्दों का एक रूप दे दूं ,
इन गलियों, इन चौराहों...को कुछ शब्द समर्पित कर दूं |
तभी कहीं भीतर से एक आवाज़ आती है,
यहाँ तो एक ज़िन्दगी सी बीत गयी,
और तुम कुछ पलों की बात करते हो |
यहाँ तुम्हारी शख्सियत ही बदल गयी,
और तुम अनुभवों को शब्दों में बयाँ करने की बात करते हो |
ये गलियाँ, ये चौराहे...
जहाँ एक अलग सी ज़िन्दगी ही पनपती है,
जहाँ हर रोज नए विचार जन्म लेते हैं,
जहाँ हर रोज एक नवीनता का आभास होता है,
जहाँ ना तो कोई बंधन है ना ही विचारों के प्रवाह को थामने वाली पुरानी मान्यताएं,
और तुम इन्हें कुछ शब्द समर्पित करने की बात करते हो |
तुम क्या ही कहोगे, तुम क्या ही लिखोगे
तुम्हारे हर शब्द, तुम्हारे हर विचार, तुम्हारी हर सोच
इस जीवन का ही एक प्रतिबिम्ब है |
ये जीवन , ये पल , ये अनुभव तुम्हारे व्यक्तित्व के मूल में हैं ,
तुम्हारा यह अस्तित्व...इन्हीं पलों, इन्हीं विचारों की एक देन है |
तुम तो बस उन पुरातन पदचिन्हों का अनुसरण कर सकते हो,
इस अवसर हेतु ऋणी हो सकते हो , बस ऋणी हो सकते हो |
7 comments:
achcha hai bhaiya :)
will miss you alottttttt.
wah... machaye ho!
mishra ji: as usual 1 number :)
Feel hai !!
bahut feel hai dada..!!
बहुत सुन्दर......................
शुभकामनाएं.
अनु
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