जैसे ही अपने कमरे से बाहर निकलता हूँ ,
माध्यम चाहे जो भी हो,
हर तरफ से बस आवाजें ही आवाजें, हर तरह की आवाजें |
किसी के रोने की तो किसी के हंसने की ,
किसी के चिल्लाने की तो किसी को कोसने की ,
किसी के गुस्से की तो किसी के पछताने की ,
किसी के झुंझलाहट की तो किसी के सांत्वना की
माध्यम चाहे जो भी हो,
हर तरफ से बस आवाजें ही आवाजें, हर तरह की आवाजें |
किसी के रोने की तो किसी के हंसने की ,
किसी के चिल्लाने की तो किसी को कोसने की ,
किसी के गुस्से की तो किसी के पछताने की ,
किसी के झुंझलाहट की तो किसी के सांत्वना की
अनगिनत.....आवाजें ही आवाजें , हर तरह की आवाजें।
सामूहिक रूप में ये एक शोर सी लगती हैं,
सामूहिक रूप में ये एक शोर सी लगती हैं,
ना तो इनके मायने दीखते हैं, ना ही कोई उद्देश्य
मन करता है ,
इनसे दूर... इस शोर से दूर.... बस निश्चिन्तता और शान्ति |
इनसे दूर... इस शोर से दूर.... बस निश्चिन्तता और शान्ति |
किन्तु,
ये शान्ति भी चुभती है, ये निश्चिन्तता भी खटकती है ,
ये शान्ति भी चुभती है, ये निश्चिन्तता भी खटकती है ,
क्या वो शोर ही था ?क्या वो आवाजें बेमानी थी ?
कहीं मैं समझने में भूल तो नहीं कर रहा ?
या मैं समझकर भी अनजाना बनना चाहता हूँ ?
फिर से बाहर निकलता हूँ ...
इस बार थोडा परखने की कोशिश करता हूँ
इस बार थोडा परखने की कोशिश करता हूँ
कुछ समझता भी हूँ ..कुछ अर्थ भी निकलते हैं
फिर भी अंत में सामूहिक रूप से....सब शोर ही लगता है, सब बेमानी ही लगता है |
फिर भी अंत में सामूहिक रूप से....सब शोर ही लगता है, सब बेमानी ही लगता है |
फिर मन करता है....
इनसे दूर... इस शोर से दूर.... बस निश्चिन्तता और शान्ति |
इनसे दूर... इस शोर से दूर.... बस निश्चिन्तता और शान्ति |
मन में उलझन बरकरार है, मैं समझ नहीं पा रहा ....
वो शोर है या उन आवाजों के कुछ मायने हैं ?
वो एक समूह के निरर्थक शब्द हैं या इसके घटकों के जीवन के प्रतिबिम्ब ?
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