Sunday, May 15, 2016

क्यूँ चुभी ये बात?

कल कुछ बात हुई,
बात साधारण ही थी,
साधारण बातचीत का ही क्रम था
और उस क्रम में मैंने कुछ कह दिया
उसमे ना तो कोई नसीहत थी, और ना ही ज्ञानवान बनने की इच्छा
बस एक तर्क था, स्थितियों का एक विश्लेषण था
कहा इसलिए कि वो बात सही लगी, महत्वपूर्ण लगी
मेरे खुद के लिए नहीं,
सपनों के लिए, भविष्य के लिए ।

लेकिन तब बात चुभ क्यूँ गयी?
क्यूँ चुभी ये बात?
बात तो सीधी सी ही थी, निश्छल भावनाएं शब्दों के रूप में थी
और क्रम भी बड़ा सहज ही था ।
तो गलती किसकी,
बात की, परिस्थितियों की, भावनाओं की
या दो भिन्न वयक्तिवों की
या फिर दो वयक्तिवों के अहम की?

सोचने वाली बात है,
कुछ दिनों पहले ही मुझसे कहा गया था,
किसे चुनो,  कैसे चुनो
क्या करो, क्या ना करो
तब तो बात ऐसे ही निकल गयी थी,
ना तो चुभन थी, ना ही टीस
बस एक समझ दिखी थी ।

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