Thursday, September 2, 2010

इसी मोहब्बत की आग में हम जल मिटे.....

हमारी मोहब्बत को आप समझ न सके, 
हमारी मोहब्बत में आप तड़प न सके ,
हमारे ज़ज्बातों को आप दरकिनार कर, 
बड़ी बेदर्दी से हँसते ही रहे...... (2) | 

इसे आपकी मासूमियत कहूं, या आपकी बेरुखी, ...... (2) 
इसे अपना दीवानापन कहूं  या सच्ची दिल्लगी;
जो भी कहूं, सच तो ये है ..... (2)
बेवफाई का ये कड़वा घूँट हमें पीना ही पड़ा..... (2)
न चाह कर भी आपकी गलियों से मुहं मोड़ना ही पड़ा | 

दुःख तो यह है.......... (2)
कितनी कोशिशों, कितनी मिन्नतों के बाद भी,
दिल में आपके मोहब्बत की आग हम लगा न सके |
खुदा कसम..... लेकिन , 
इसी मोहब्बत की आग में हम जल मिटे,
इसी मोहब्बत की आग में हम जल मिटे |

7 comments:

anshu said...

mast likha hai mishra ji
aise hi lage raho :)

kishoree said...

really nice poem with beautiful lines n grt romantic thoughts!!

keep it up...devdas ji :)

Avimuktesh said...

Good lagta hai kuch chijon ka gahra asar pad gaya hal filhal me....

arvind said...

nice... like it!!!

Anonymous said...

ऐसा लगता है जैसे ये कोई गाना लिखा है आपने ....खैर जो भी है अच्छा है |

Shailesh said...

sahi hai bhai....seems someone broke your heart :D

@@ ANKUR MAHARAJ @@ said...

Good