Tuesday, June 8, 2010

आवश्यकता तो बस एक छोटी सी शुरुआत की है...

कहानी अपने आप में बड़ी दिलचस्प होती है| कभी इसमें भावनाएं तो कभी कल्पनाएँ तो कभी अनुभव झलकता है | यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है, बल्कि मैं तो यह कहूँगा इसमें तीनों का सम्मिश्रण है | किन्तु जिस प्रकार किसी भी कहानी पर लेखक के अनुभव का सबसे ज्यादा असर पड़ता है इस कहानी पर भी कुछ ऐसा ही है |
मैं अपनी ट्रेन के इंतज़ार में प्लेटफ़ॉर्म पर बैठा था | इतेज़ार करना शायद ही किसी को पसंद हो, मुझे तो बिलकुल नहीं | जब मैंने आजतक किसी लड़की का इंतज़ार नहीं किया तो किसी और का इंतज़ार करना कितना दुखदायी हो सकता है, इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं | लेकिन मेरी एक  बुरी आदत भी है और वो है समय से काफी पहले स्टेशन पहुँच जाना | हांलांकि भारतीय रेलवे, भारतीय सरकारी कर्मचारियों की तरह है किन्तु पता नहीं कब किसी कर्मचारी का मूड बिगड़ जाए और फिर लेट आने की वजह से आपका काम न हो | इसी डर से मैं हमेशा समय से पहले पहुँच जाता हूँ | लेकिन मैं जिस अपवाद से इतने दिनों से डरा हुआ हूँ आज उसकी गुंजाईश नहीं है और ट्रेन पहले ही विलम्ब हो चुकी है | और मैं हर बार की भांति बेंच पर बैठा समाचार पत्र में व्यस्त था |

"आशु भैया, कैसे हैं?"
मैंने पेपर से सिर उठाकर देखा तो एक लड़का मेरे सामने मुस्कराते हुए खड़ा है |
"आप फिर कभी इंस्टिट्यूट नहीं आये| काफी बिजी हो गए होंगे जॉब मिलने के बाद| कन्वोकेशन पर भी आप नहीं आये थे |"
मुझे चेहरा जाना पहचाना तो लगा किन्तु मैं नहीं समझ पा रहा था की ये कौन है | और इसे कैसे मालूम कि मैं कन्वोकेशन में नहीं गया था | कोई बैचमेट तो नहीं लगता न ही जूनियर| 
मेरी परेशानी और आश्चर्य भरे चेहरे को लगता है उसने पहचान लिया और बोल पड़ा -" अरे आपने पहचाना नहीं, मैं सुब्रो, वो कैंटीन वाला | याद आया ?? " 
ओह, अरे ये तो सुब्रो है, मैं इसे कैसे भूल सकता हूँ| इसके हाथ कि चाय और मैगी खा-खा कर तो  मैंने  IIT में पांच साल गुजारे हैं|
"अरे सुब्रो तुम, कैसे हो और यहाँ क्या कर रहे हो ? यार मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम्हें यहाँ देखूंगा |"
"मैं ठीक हूँ और आप  कैसे हैं?"
"यार मैं भी मस्त हूँ | जिंदगी सही से चल रही है और अब थोड़ी स्थिरता आ गयी है | और तुम्हारे कैंटीन का काम कैसा चल रहा है ?"
"मैंने वो कैंटीन तो पहले ही छोड़ दी थी| अब मैंने एक रेस्टोरेंट खोल लिया है |आपके संस्थान छोड़ने के बाद काफी कुछ बदल गया है|"
"अरे ये तो बड़ी अच्छी बात है | और क्या चल रहा है लाइफ में? "
"बाकी सब बढ़िया है| मैंने भी 12th पास कर लिया है | आपने थोडा-थोडा पढ़कर पढने कि इच्छा जागृत कर दी थी| तो फिर उसके बाद मैंने भी धीरे धीरे करके 10th और12th कर लिया | फिर कुछ दिनों काम करके थोड़े पैसे बचा लिए और फिर एक ढाबा खोला था| धीरे-धीरे पूरा एक रेस्टोरेंट बना लिया है| अब तो आर्थिक स्थिति भी थोड़ी अच्छी हो गयी है|"
"अरे ये तो बड़ी अच्छी बात है| काफी ख़ुशी हुई जानकार की तुमने इतनी तरक्की कर ली है|"
"अरे ये सब आपकी देन है| अगर आपने मुझे पढाया न होता तो मैं अभी भी उसी कैंटीन पर होता| इसीलिए मैं भी शाम में पढाता  हूँ और मैं तो अपने गाँव में एक स्कूल खोलने जा रहा हूँ | लोगों से मांगकर और कुछ अपना मिलाकर पैसा हो गया है | अगले महीने ही उसका उद्घाटन है|"
"अरे ये तो और भी अच्छी बात है | चलो कम से कम तुम और लोगों के लिए भी सोच रहे हो|"
"अरे जब आपने मेरे लए सोचा था तो मेरा भी तो फ़र्ज़ बनता है, कुछ करू | अच्छा भैया, मेरी ट्रेन आ गयी है और यहाँ स्टोपेज भी कम ही है| आप मुझे अपना नम्बर दे दीजिये, मैं आपको कॉल करूँगा| और कभी वापस आइये खड़गपुर |"

मैंने उसे अपना नम्बर दे दिया और वो विदा लेकर चला गया | मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आ गए | एक दिन ऐसे ही खेल खेल में आकर मैंने कैंटीन के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था |  सही कहूं, मैं तो कभी इसको लेकर गंभीर नहीं था|  मैंने तो ऐसे ही इन लोगों को पढ़ाना शुरू किया था | फिर धीरे धीरे मेरी भी रूचि बन गयी| धीरे-धीरे सब तो छोड़कर चले गए, पर सुब्रो आता रहा | जिस दिन मैं संस्थान छोड़ रहा था, मुझे याद है, उस दिन सुब्रो ने कहा था "आपने मुझे पढाया है और अब मुझे पढने में मजा आता है | मैं आगे पढूंगा| "| मैंने उसको अपना पता लिखकर दिया था और कहा था कि जब भी कोई जरूरत हो तो लिखना | लेकिन उसने कभी लिखा नहीं| शायद स्वाभिमान की  वजह से कभी उसने ना कहा | और फिर मैं भी व्यस्त हो गया और भूल गया कि सुब्रो नाम का चरित्र मेरी जिंदगी में कभी कोई था| और आज अचानक उसे ऐसा देखकर इतनी ख़ुशी हो रही है कि जैसे उसकी सफलता मेरी सफलता है|

हम हमेशा संसाधनों और समस्याओं को दोष देते हैं और कभी किसी के लिए कुछ नहीं करते | मेरा एक छोटा सा अगंभीर सा प्रयास अगर किसी के जीवन में इतना परिवर्तन ला सकता है तो अगर सब थोडा- थोडा करें तो ये पूरा समाज ही  परिवर्तित हो सकता है | सभी को घर बार छोड़कर समाझ सेवा के लिए निकलने की जरूरत नहीं है |  आवश्यकता तो बस एक छोटी सी शुरुआत की है |

अब तो बस जल्दी से छुट्टी लेकर खड़गपुर जाने का इंतज़ार है | सुब्रो की असल जिंदगी की कहानी सुनने....

8 comments:

उन्मुक्त said...

Do write it down that story. we will be waiting to read it.

Truth said...

sahi likhe ho bhaiya!

Ali said...

motivational

safar said...

touching....good prose....

Archana Chaoji said...

एक अच्छी पहल.........सुब्रो को बधाई...जो उसने कर दिखाया है ......सुखद भविष्य की शुभकामनाएं..........

स्वप्न मञ्जूषा said...

accha likhte hain aap..
shukriya..

anshu said...

kafi achchhi kahani hai
:)

संजय भास्‍कर said...

एक अच्छी पहल