Tuesday, May 25, 2010

प्रश्नों के साथ.. उत्तरों की तलाश में.....

जैसे जैसे उम्र ढलती जाती है ,
जीवन की समस्याएं हमें उलझाएं जाती हैं,
हमारे हर कर्तव्य तार्किक होते जाते हैं,
और हम.....हर वक़्त हम कुछ न कुछ खोते जाते हैं |

हम उस हर चीज को भुला देते हैं... जो हमारे बचपन से जुडी होती है;
हमारा अदम्य साहस, हमारी जिज्ञासा, हमारी निर्दोषता, हमारी निष्कपटता....
और सबसे महत्वपूर्ण... हमारी कल्पनाएँ....|
सब कहीं खो सी जाते हैं...
हम भूल जाते हैं,
हमारे जीवन के सबसे अच्छे दिन... हमारा बचपन...
इन कल्पनाओं के सहारे ही तो बीता है |
बचपन की उस अज्ञानता में.... हमारे कल्पनाओं की उड़ान असिमित थी,
हम अपनी कल्पनाओं में अपनी ही दुनिया बनाते थे... बिगाड़ते थे...
हमारे अपने सपने थे और उन्हें पाने की अपनी ही ललक थी|

किन्तु,
ज्ञान का दायरा बढ़ते ही....हम बड़े व्यवहारिक हो जाते हैं..
बचपन से जुडी हर चीज हमें अव्यवहारिक लगने लगती है....
हम भयभीत होने लगते हैं...
जीवन,सफलता...ना जाने कितनी ही चीजों के लिए...|

और कल्पनाओं को.....बचपना, बचपन की नादानी कह भुला देते हैं....
हम भूल जाते हैं.... इन कल्पनाओ में कितनी शक्ति है....
समस्याओं को हल करने की...आशा प्रदान करने की....
मन को एक नयी उड़ान देने की...कुछ नया कर गुजरने की...|

लेकिन ना.. हम सब भूल जाते हैं....
तार्किक बन जाते हैं....व्यवहारिक बन जाते हैं |

कभी-कभी तो लगता है...
हमारा ज्ञान ही सबसे बड़ा दुश्मन है... हमें दुखी रखने का सबसे बड़ा कारण हैं.....
लगता है इसी की वजह से हमारी कल्पनाएँ कहीं खो सी जाती हैं....
और हम इस तार्किक और व्यवहारिक दुनिया में खोये रहते हैं....
प्रश्नों के साथ.. उत्तरों की तलाश में.....|

1 comment:

Ashutosh Kumar said...

Positive: achha likha hai..shabd kafi achhe hain aur bhavna bhi.

Negative: Kafi old model topic hai.

Confusion: Ya to apki likhne ki shaily kafi high level ki hai ya fir thoda sudhar krne ki kosis krni hogi. Maine kai bar aisi kavitayen padhi hai jinme rhyming utpatang hoti hai.ye b isi type ka laga mujhe. may b i dnt knw hw to read such poems or may b u really hv utpatang rhyming. though mujhe kafi achhe poets(famous,bt dnt knw y) ki rhyming samajh me nhi ati.