Saturday, May 29, 2010

माँ, बस तुम जल्दी चली आओ.....

तुम्हीं मेरी प्रेरणा, तुम्ही मेरी कल्पना ;
तुम्हीं मेरी आशा, तुम्हीं मेरा विश्वास |
तुम मेरे जीवन में हो, तुम मेरे रग-रग में हो ;
तुम मेरे अस्तित्व का कारण हो, हर दर्द का निवारण हो ;
तुम मेरे जीवन की शक्ति हो , तुम्हीं मेरी भक्ति हो |

मैंने तुम्हें देखा नहीं है,
ना ही तुम्हारे मधुर शब्दों से मेरे कान गुंजित हुए हैं;
फिर भी पता नहीं क्यूँ ,
तुम्हारे स्पर्श की अनुभूति सी लगती है|
ऐसा लगता है,
तुम यहीं कहीं आसपास उपस्थित मुझे देख रही हो |

यहाँ सब कहते हैं,
मैं अनाथ हूँ, मेरा कोई नहीं,
फिर भी पता नहीं क्यूँ , मुझे लगता है
तुम आओगी जरूर आओगी
आओगी और मुझे अपने सीने से लगा लोगी |
तब मैं अपनी सारी परेशानियाँ,
तुम्हारे गोद में सिर रखकर कह सकूँगा,
सबकुछ भुलाकर, तुम्हारी गोद में
चैन से सो सकूँगा |

यही आशा मुझे आधे पेट भी जिलाए रखे है ,
यही आशा मुझे इन निराशाओं में जिलाए रखे है |
मैं इन सारी परेशानियों को हँस कर सह लेता हूँ ,
क्यूंकि मुझे मालूम है, तुम्हारे आते ही ये सब ख़त्म हो जाएँगी |
और फिर मुझे अनाथ कहने वाले,
इन सब के मुँह पर चुप्पी का ताला लग जाएगा |

लेकिन हाँ माँ
मैं एक बात कहना चाहता हूँ ,
बस तुम जल्दी चले आओ |
मैं भूखे पेट तो रह सकता हूँ
लेकिन अब ये ताने सहे नहीं जाते|
यह अनाथ शब्द गाली सा लगता है,
मेरे धैर्य को खोखला सा कर जाता है |
माँ, अब ये सब सुना नहीं जाता, सहा नहीं जाता ;
मुझे कुछ और नहीं चाहिए;
बस तुम जल्दी चली आओ|
माँ, बस तुम जल्दी चली आओ......

5 comments:

Ali said...

awesome yar... beautiful peom

Avimuktesh said...

good one :)

Ashutosh Kumar Mishra said...

thanx

Anil kumar said...

nice one yaar.....ab ek book bhi compile kar de in poems ki..

safar said...

touching...