Friday, May 14, 2010

खुद को तलाशते, अब बढ़ते ही जाना......

निकला अकेले हूँ इस सड़क पर,
नहीं कोई मंजिल नहीं कोई साथी,
तन्हाँ अकेले मुसाफिर यूँ बनकर,
अकेले चला जा रहा इस डगर पर |

घर को है छोड़ा, है रिश्तों को तोडा,
खुद को समझने अकेले ही निकला,
घुमक्कड़ बना अब जीवन है जीना,
न है अब रूकना ना ही है अब डरना |

न पाने की चाहत है, न खोने का डर,
भविष्य की न चिंता, न अतीत का डर,
किसी को ना दिखलाना, ना है अब समझाना,
खुद को तलाशते, अब बढ़ते ही जाना |

2 comments:

Anonymous said...

Really Nice especially the last versa

Ali said...

good one keep it up