निकला अकेले हूँ इस सड़क पर,
नहीं कोई मंजिल नहीं कोई साथी,
तन्हाँ अकेले मुसाफिर यूँ बनकर,
अकेले चला जा रहा इस डगर पर |
घर को है छोड़ा, है रिश्तों को तोडा,
खुद को समझने अकेले ही निकला,
घुमक्कड़ बना अब जीवन है जीना,
न है अब रूकना ना ही है अब डरना |
न पाने की चाहत है, न खोने का डर,
भविष्य की न चिंता, न अतीत का डर,
किसी को ना दिखलाना, ना है अब समझाना,
खुद को तलाशते, अब बढ़ते ही जाना |
2 comments:
Really Nice especially the last versa
good one keep it up
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