उनसे सत्य के धरातल पर एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ |
आप कहते हैं,
इस तंत्र से आपको आस नहीं,
किसी पर भी आपको विश्वास नहीं |
सर्वत्र हो रहा भ्रष्टाचार का विकास है,
आम आदमी हर वक़्त निराश है|
अब अपराधी और अभिनेता राजनेता बनते हैं,
अपनी नौटंकियों से संसद को त्रस्त करते हैं |
हर जगह किसी न किसी प्रकार का उग्रवाद है,
रक्षा हेतु हमें पुलिस पर न विश्वास है |
न्याय मिलने में देरी है होती,
पैसे की वजह से गरीबों को वो भी नहीं मिलती |
जाति और आरक्षण ने संस्थाओं को खोखला कर रखा है,
सामाजिक न्याय मिलने में फिर भी इतना देर हो रखा है |
आर्थिक स्तर पर तरक्की तो होते जा रही ,पर गरीबों और अमीरों के बीच की खाई बढ़ते ही जा रही |
विश्व स्तर पर आतंकवाद, घर में उग्रवाद से जनता पीड़ित है,
सामाजिक चेतना की नहीं किसी को अनुभूति है |
चारों तरफ ऐसी स्थिति देखकर हर कोई निराश है,
सबके मन में डर है भय है गुस्सा है, पर नहीं कोई उपाय है |
मैं आपसे असहमत नहीं हूँ ,
स्थिति वाकई में ख़राब है, गरीबों का जीना हराम है |
इस तरीके से देश में विकास, हो नहीं सकता,
समस्याओं को सुलझाया, कदापि जा नहीं सकता |
पर मेरा आपसे एक प्रश्न है,
इन सबके लिए जिम्मेदार कौन है ?
हम सब ने अपनी दुनिया को सीमित है कर लिया,
समाचार पत्रों में है देश को समेट लिया |
किसी दुर्घटना पर संवेदना के दो शब्द बोल देते हैं,
इतने से ही कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं |
भ्रष्टाचार को सामने गाली तो देते हैं ,
पर पीठ पीछे सारे कुकृत्य हम करते ही रहते हैं |
अपना स्वार्थ जब सामने आ जाता है,
तो नैतिकता और दूसरों का हित बेकार हो जाता है |
पढ़े लिखों के लिए राजनीति से दूर रहने में ही भलाई है,
कमरे में समाचार पर इसका विश्लेषण करना ही उनकी अच्छाई है |
तो प्रश्न यह है,
फिर हम शिकायत क्यूँ करते हैं,
हर समस्या हेतु राजनीति और तंत्र को दोष क्यूँ देते हैं ?
तंत्र हमसे अलग नहीं है, वो हमारा ही प्रतिरूप है,
राजनीति निरपेक्ष नहीं, समाज का ही एक रूप है |
2 comments:
बहुत ही बढिया बात। राजनेता कहीं चन्द्र लोक से नहीं आते, यह हमारा ही अंग हैं और हम ही इन्हे अपने स्वार्थों की पूर्ति कराकर भ्रष्ट बनाते हैं।
हर समस्या हेतु राजनीति और तंत्र को दोष क्यूँ देते हैं ?
तंत्र हमसे अलग नहीं है, वो हमारा ही प्रतिरूप है,
राजनीति निरपेक्ष नहीं, समाज का ही एक रूप है |
बिल्कुल सही !!
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