Saturday, June 5, 2010

प्रत्यक्ष प्रमाण..

रेलयात्रा अपने आपमें बड़ी दिलचस्प होती है | प्लेटफ़ॉर्म से लेकर पूरी यात्रा तक आपका इतने सारे चरित्रों से पाला पड़ता है कि लगता है कि एक यात्रा में ही हमें न जाने कितने अनुभव हो गए | मुझे तो लगभग हर रेलयात्रा ने कुछ न कुछ सिखाया है | अनुभव कभी कडवे हुए हैं तो कभी मीठे | कभी समाज का डरावना रूप दिखा तो कभी ऐसा जिससे लगा कि अभी भी उम्मीद बाकी है | वैसे सच कहूं तो मुझे प्लेटफ़ॉर्म पर एक छोटा सा भारत दिख जाता है| 


वैसे तो कोई भी यात्रा अपने आसपास वालों से बात किये बिना पूरी नहीं होती किन्तु मेरी दिलचस्पी बीच-बीच में होने वाली परिचर्चाओं(Discussions) में है | इनमें बड़े ही अच्छे तर्क और तथ्य सामने आते हैं | इनमे आम आदमी की सोच झलकती है|  खैर मेरा यह अनुभव भी कुछ इसी प्रकार की एक परिचर्चा से जुडा है |


मैं अपनी खिड़की के पास वाली सीट पर बैठकर ओ. हेनरी द्वारा लिखी कहानियों का एक संकलन पढ़ रहा था | ओ. हेनरी और प्रेमचंद की कहानियों में मुझे बड़ी ही समानता नज़र आती हैं | हांलांकि दोनों के विषय और प्लॉट में काफी अंतर हैं किन्तु दोनों की ही कहानियों में समाज की  छुपी और दबी हुई चीजों का सटीक वर्णन होता है | सही में किसी भी समाज को समझने के लिए एक सूक्ष्म निगाह होनी चाहिए |


मैं अपनी इन्हीं सोच में मग्न था कि एक महिला मैगज़ीन में लेख पढने के बाद बोल पडी - "बताइए, देश का क्या होगा? ये नेता और नौकरशाह, सब देश को खोखला कर देंगे और ये प्रशासनिक अधिकारी तो सबसे भ्रष्ट हैं | ये तो सब के सब नेताओं के चमचे होते हैं और बस पैसा खाना इन्हें आता है | मैं तो अपने बेटे को कहूँगी, बेटा पढ़ लिखाकर यहाँ से निकल लो..जब ऐसे भ्रष्ट अधिकारी हैं तो देश का कुछ नहीं हो सकता |"

तभी एक सामने बैठे सज्जन बोले - "अरे इतनी भी निराशाजनक स्थिति नहीं है और सब के सब अधिकारी भ्रष्ट नहीं है | अगर ऐसा होता तो ये देश चल नहीं रहा होता | पिछले साठ सालों में हमने तरक्की भी की है और अगर सब के सब भ्रष्ट होते तो ये प्रजातंत्र जिसमे आप खुल्लम खुला ये सब बोल पा रही है, आज चल न रहा होता |"

"अरे आप बहुत आशावादी हैं, लगता है आपने कभी समाचार पत्र नहीं पढ़ा| हर दिन तो ऐसी खबरों से समाचार भरे होते हैं | जहाँ देखिये, तहां भ्रष्टाचार हिंसा ही तो है | अगर ये लोग इतने ही कुशल हैं तो ये कुछ रोकने का उपाय कुछ नहीं करते |"

"मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि समस्याएं नहीं हैं, किन्तु सब के सब भ्रष्ट हैं, यह आरोप गलत है | और मीडिया का क्या कहना, उन्हें तो अच्छी खबरों में दिलचस्पी ही नहीं | ये तो डर और गन्दगी बेचते हैं | और अगर यह सिस्टम ख़राब है ही तो हमें इसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए | यह सिस्टम हम लोगों से ही मिलकर बनता है | "

"लगता है कि आपका इस सिस्टम से पाला नहीं पड़ा | आप कभी इस सिस्टम में कोई काम करके देखिये, तब तो पता चलेगा कि कितने अच्छे हैं और कितने बुरे | इससे दूर रहना ही अच्छा है | अगर इसके चक्कर में फंसे तो भविष्य चौपट हो जायेगा | "


तभी अगला स्टेशन आ गया और इस बहस पर चढ़ती भीड़ ने रोक दिया | अचानक से कोच में एक 15-20 चढ़े | उसमे आधे वर्दी वाले थे | उसमे से एक ने सामान रखकर बोला "सर, सीट इधर है |" एक सज्जन आये और मेरी एकदम सामने वाली सीट पर बैठ गए | तभी एक इंस्पेक्टर टाइप के दीखते हुए आदमी ने टीटी से कहा "ये यहाँ के DM साहब हैं| जरा आराम से ले जाइएगा |" तब ये सब ताम-झाम समझ में आया | खैर ये सब भी ख़त्म हुआ और ट्रेन आगे चली | मुझे इस प्रकार के ताम झाम से सदैव गुस्सा आया है और यहाँ तो ये सब सार्वजानिक धन के दुरुपयोग पर हो रहा था | मुझे उस महिला की बात सच ही लगी |


तभी DM साहब ने सामने वाले सज्जन को देखकर बोला .." आर यू रमन? 1999 बैच? "
" एस, आइ एम् | बात क्या है ?"
"अरे यार तुने पहचाना नहीं | मैं अनुराग | कैसे हो तुम? ट्रेनिंग के बाद तो तुमसे टच ही न रहा | मैंने सुना तुम नालंदा में पोस्टेड थे |
"अनुराग, तू यार...तू तो बड़ा बदल गया है| मैं ठीक हूँ | सब सही चल रहा है | अरे यार काम के चक्कर में बहुत काम लोगों से संपर्क ना रहा | फिर तुम तो UP कैडर में भी थे | तुम्हें भी तो डिस्ट्रिक्ट पोस्टिंग मिल गयी होगी |"
"हाँ, मैं गोरखपुर में पोस्टेड हूँ आजकल | यार तुम्हें तो हमसे पहले मिली थी | अपने IAS बैच के टॉपर थे| और तो और तुम्हारी इमानदारी के किस्से इधर भी काफी मशहूर हैं | वैसे तुम AC-3 में क्या कर रहे हो ?मुझे तो अचानक से जाना पड़ रहा है, बस इस ट्रेन में ही जगह मिली और इसमें AC-I लगते नहीं हैं |"
"यार मैं तो इसी में चलता हूँ |पुरानी आदत जो ठहरी |"

यह सुनते ही सबका मुहं खुला का खुला रह गया | वो महिला जो कुछ देर पहले रमन साहब से बहस कह रही थी, आश्चर्यचकित सा होकर उन्हें देख रही थी | मैं सोच रहा था, अभी जो कुछ भी कहा जा रहा था, उसका प्रत्यक्ष प्रमाण दिख गया | ऐसा कितनी बार होता है जब किसी बहस के दोनों पहलुओं के जीत जागते उदाहरण हमारे सामने मौजूद होते हैं और एक वक्ता स्वयं एक उदाहरण होता है | यह सोचते - सोचते मैं फिर मशगूल हो गया अपनी किताब में...ओ हेनरी द्वारा वर्णित समाज में |

2 comments:

Udan Tashtari said...

हर तरह के लोग हैं. अच्छा लगा आपका संस्मरण पढ़कर.

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

बहुत ही अच्छा संस्मरण है.
हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं ई-गुरु राजीव हार्दिक स्वागत करता हूँ.

मेरी इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए. यह ब्लॉग प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.

यदि कोई सहायता चाहिए तो खुलकर पूछें यहाँ सभी आपकी सहायता के लिए तैयार हैं.

शुभकामनाएं !


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