Thursday, December 25, 2008

"सत्य - असत्य"

मैं तम हूँ ,
युगों - युगांतर से हर मनुष्य के मन में बसा असत्य हूँ ।
मैं अंधकार, मैं भ्रष्टाचार ;
है राज मेरा सर्वत्र व्याप्त ।
हैं आज मेरे सब अधीन ,
करता हूँ मैं दुनिया को दीन ।
है नहीं आज कोई कुलीन ,
सब हो चुके जीवन से हीन ।
याद रखो ,
मैं नहीं नवीन हूँ ,
प्रारम्भ से ही व्याप्त हूँ ,
हर पाप में मैं ही हूँ,
हर व्यक्ति के मैं मन में हूँ ।
रावण भी था , मैं ही था कंस ;
मैं ही मनिंदर , की हत्या नृशंस ।
आज मेरा एकक्षत्र राज है ,
असत्य ही आज है ।
असत्य ही आज है ।


हे असत्य ,
तुने अब बोल लिया ।
अब बारी मेरी है आयी ,
तुने पुरी कहानी नहीं है सुनायी ।
मैनें तुम्हें पुरा दिया अवसर ,
तो मुझे मत आकों कमतर ।
मैं परिचय अपना देता हूँ -
मैं सत्य हूँ ।
मैं प्रकाश हूँ ।
मेरी एक किरण तुम्हें चीर है देती ,
एक आशा पुरी निराशा को है भगा देती ।
तुम क्या कहते हो ,
रावण था तो राम भी थे ,
कंस था तो कृष्ण भी थे ,
हमेशा सत्य की विजय ही है होती ,
असत्य को कहीं भी जगह नहीं मिलती ।
मैं ज्यादा नहीं हूँ बोलता ,क्यूंकि मैं अपने पर विश्वास नहीं खोता ।
आज भी सत्य की ही पूजा है होती ,
सबके मन में राम की प्रतिमा ही है बसती ।
याद रखो,
सत्य ही जीवन का संचार है ,
सत्य ही सही आचार - विचार है ।
सत्य ही उन्नति है कराता ,
तू असत्य,सदा खाई में है गिराता ।
तो मैं बस अब कहता हूँ -असत्य नहीं किसी का वर्तमान है ,
क्योंकि असत्य सदा नाशवान है ।
चिरस्थायी सत्य ही है ।
सत्य ही भूत था ,
सत्य ही वर्तमान है ,
सत्य ही भविष्य होगा ।

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