Thursday, December 25, 2008

"बस यही दुआ करता हूँ आज मैं, सदा तुम्हें हँसते ही देखूं मैं...."

दिवस बीतें, माह बीतें, वर्ष बीतें ;
तुम्हारे साथ ना जाने कितने मौसम बीतें।
किंतु क्या सब एक क्षण में ही ख़त्म हो गया ?
वर्षों का विश्वास एक शक की वजह से टूट गया ?
क्या हमारे विश्वास की कड़ी इतनी कमजोर थी ?
ना मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं होता कि,
तुम मुझे छोड़कर जा रहे हो ।


हमनें एक साथ इस जीवन की शुरुआत की थी,
हँसते-हँसतें सारी मुश्किलें झेली थी ।
हर कठिनाई का एक साथ सामना किया था ।
एक साथ एक-एक ईंट जोड़कर,
यह आशियाना खड़ा किया था ।
किंतु, आज देखो, सब बेकार है,
आज सब फीका-फीका लगता है ।
यह सफलता बेगानी सी लगती है ।
तुम्हारे बिना तो दुनिया ही अधूरी लगती है ।


लेकिन जाओ , मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं।
जब विश्वास ही न रहा तो साथ रह के क्या फायदा ?
हमनें विश्वास के दम पर अपनी दुनिया बनाई थी,
आज वो बिखर गई,
हम खो गए ।
लेकिन, मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं ,
शायद मेरी तरफ़ से ही कोई कमी है रह गयी ।
शायद मैं ही तुम्हें समझ ना सका,
और अपना बना ना सका ।
फ़िर भी यही कामना है मन में मित्र,
तुम जहाँ भी रहो सदा खुश रहो ।
कभी कोई गम ना तुम्हें सताए,
हर वक़्त चेहरे पर मुस्कान छाए
यूँही सदा तुम मासूम रहना,
कभी भी अपने को तुम ना बदलना
सफलता सदा तेरे कदमों को छुए,
हर सपना तेरा सच होते ही जाए
बस यही दुआ करता हूँ आज मैं,
सदा तुम्हें हँसते ही देखूं मैं

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