Thursday, December 25, 2008

"बेवकूफ आशिक"

आज चौराहे पर एक आशिक को फ़िर आशिकी चढ़ गयी ,
नई लड़की देखते ही उसकी दायीं आँख फड़क गयी ।
कहा दायीं आंख का फड़कना शुभ संकेत है ,
आज नहीं किया तो जीवन भर के लिए खेद है ।
सोचा मौका अच्छा है , माल लगता भी अभी कच्चा है ।
झट से इन्होंने अपना फार्मूला लगाया ,
भइया से सईंया बनने का चक्कर चलाया।
आशिक महोदय तुंरत बस स्टॉप की तरफ़ बढ़े ,
कन्या के बगल में जाकर हो गए खड़े ।
लेकिन ये क्या ,
कन्या किसी दुसरे से बात कर रही थी ,
इसे देखकर इनकी बहुत जल रही थी ।
इन्होंने भी हिम्मत नहीं हारी,
कहा कि आज तो पडूंगा सब पर भारी ।
थोडी देर में इनकी किस्मत भी जागी ,
कन्या की नज़रें इनकी तरफ़ भी भागी,
बस क्या था,
झट से इन्होंने भी उनकी तरफ़ एक मासूम मुस्कान छोड़ी ।
कन्या ने भी सकारात्मक जवाब दिया ,
इन्होंने सोचा लड़की को हँसाया तो समझो की उसे फँसाया ।
अब बड़े प्यार से इन्होंने अपना परिचय दिया,
साथ में उनका भी प्यार से ही परिचय लिया ।
अब क्या ये तो भाई मगन थे,
जाना था इन्हें दस नंबर की बस में ,
किंतु बात करते करते चढ़ गए आठ नंबर की बस में ।
बस में पूछा आपका घर है कहाँ ,
उत्तर सुनते ही बोले उधर ही तो है मेरा धंधा।
अब तो आपसे रोज मुलाकात होगी ,
साथ में यात्रा भी प्यार से ही कटेगी ।
इनके इस प्यार भरे कथन पर ,
उस सुंदर कन्या ने बस एक मुस्कान छोड़ी ;
इन्हें लगा की इनकी गाड़ी सही ट्रैक पर दौडी ।
अब क्या था, ये प्रतिदिन उसी आठ नंबर की बस से जाने लगे,
उस सुंदर कन्या से कुछ ज्यादा ही बतियाने लगे ।
बात- बात में परिचय बढ़ा, मुलाकातें ज्यादा होने लगीं ,
बस ही नहीं अब कॉफी शॉप भी इनकी बातें सुनने लगीं ।


एक दिन आशिक महोदय के मित्रों ने पूछा ,
आजकल एक कन्या के साथ बहुत दीखते हो ?
और भाई , ये मोहतरमा कौन हैं ?
हमें भी इनके बारे में बताओ,
अपनी पूरी प्रेम कहानी हमें भी तो सुनाओ !
इन्होंने भी गर्व से अपनी प्रेमिका का परिचय सुनाया ,
अपने मित्रों को विस्तारपूर्वक अपनी कथा से अवगत कराया ।
तभी इनके एक मित्र ने बोला भाई इस नाम से बचकर रहना ,
पत्थर सिंह जी की छोटी बेटी का नाम भी है गहना ,
तुम तो जानते ही हो उनका शौक है आशिकों का हाथ-पैर तोड़ना ।
प्रेमी जी ने तुंरत चिल्लाकर कहा,ये लड़की बड़ी ही अच्छी है,
दिल की बहुत सच्ची है
उसने मुझे सब कुछ बताया है ,
मुझे अपने दिल में बसाया है
अरे चिंता तुम ना करो ,
भले ही नाम हो उसका गहना,
वो नहीं है है पत्थर सिंह जी कि संतान ,
क्योंकि ये तो रहती है प्रेम विहार में , प्रेम कुंज नहीं इसका स्थान ।


अब पुनः वर्तमान में आते हैं ,
अपने दो प्रेमियों की प्रेम कहानी को आगे बढाते हैं ।
इनकी प्रेम कहानी काफी आगे बढ़ चुकी थी ,
कॉफी शॉप से निकलकर सिनेमाघर तक पहुँच चुकी थी ।
आशिक साहब को भी समझ में नहीं आ रह था ,
कि उनका नसीब इतना क्यूँ चमक रह था ?
वर्षों तक चौराहे पर इन्होंने आशिकी चलायी थी ,
किंतु एक भी लड़की नहीं पटा पायी थी ।
आजकल इनके किस्मत का सितारा बुलंद था ,
इनके साथ इतनी सुंदर लड़की का साथ था ।
लेकिन क्या किया जाए ,
भाई साहब ने भी गड़बड़ नक्षत्र में ही जन्म लिया था ।
इनके साथ कुछ अच्छा होना भी असंभव था ।
मित्रों कि बातों पर इन्होंने ध्यान ही नहीं दिया ,
प्रेम कहानी को फुल स्पीड से जारी रखा ।
अब तो घर भी छोड़ने आने लगे,
छुप-छुप कर मुहल्ले में भी मिलने आने लगे ।
भाई ये प्रेम कहानी शांति पूर्वक चल रही थी ,
दोनों को लगा की उनकी प्रेम गाड़ी सही ट्रैक पर दौड़ रही थी
लेकिन तूफान के पहले भी होती है शांति ,
दो मिनट भी नहीं लगता और छा जाती अशांति


अब थोडा भविष्य में आते हैं ,
प्रेमी जी एक घटना के बाद अस्पताल पहुंचाए जाते हैं
सारे मित्र जन देखने आते हैं ,
और सभी कोई घटना का कारण पूछ जाते हैं
कराहते हुए ये भी मुस्कराकर कहते हैं ,
जी थोडा ज्यादा ही हिम्मत दिखाई थी
,छः गुंडों से हुई इनकी लडाई थी
बात एक कन्या के इज्जत की थी ,
इसलिए ही इन्होंने आवाज़ उठाई थी
आखिर मैं मर्द हूँ ,
अबला का अपमान सहन नहीं कर सकता ,
किसी को संकट में घिरा देखकर शांत नहीं रह सकता


अब मैं आपको भूतकाल में ले चलता हूँ,
नए तथ्यों से अवगत भी कराता हूँ ।
एक पहलवान थे पत्थर सिंह जी ,जैसा नाम , वैसा ही काम ।
इन्होंने कई बड़ी-बड़ी कुश्तियाँ जीती थीं ,
कईयों की हड्डियाँ भी तोडी थीं ।
कुश्ती इनकी खानदानी परम्परा थी ,
लेकिन इनकी भी एक विडम्बना थी ।
भगवान ने दिया नहीं इनको पुत्र था ,
इनके परिवार में कुश्ती का होना अंत था ।
किंतु भगवान की कृपा से इनके घर में ,
दो सुंदर-सुंदर कन्याओं ने जन्म लिया था ।
जिन्हें देखकर सारे नौजवानों का दिल धड़कने लगा था ।
इन लड़कियों के चक्कर में कईयों के हाथ-पैर टूटे थे ,
क्योंकि पत्थर सिंह जी प्रेम के बहुत बड़े दुश्मन थे ।
पत्थर जी का नाम शहर में काफी मशहूर था ,
कुश्ती के साथ हड्डियाँ तोड़ना भी उनका शौक था ।
लेकिन उनका मन भी अब भर चुका था ,
हड्डियाँ तोड़ते-तोड़ते शरीर थक चुका था ।
इसलिए लड़कों की आशिकी से तंग आकर ,
हाल ही में पत्थर सिंह जी ने अपना ठिकाना बदला था ,
प्रेम कुंज को छोड़कर प्रेम विहार में घर जमाया था ।
एक दिन इन्होंने अपनी छोटी बेटी को किसी लड़के के साथ देख लिया ,
बस क्या था इन्होंने पूरा माजरा समझ लिया
एक दिन इन दोनों का पीछा किया,
पारा तब इनका चढ़ गया ,
जब अपनी बेटी को लड़के के साथ सिनेमा देखते पकड़ लिया
लेकिन इज्जत इन्हें प्यारी थी ,
इसलिए वहां तो कुछ नहीं किया ,
घर के करीब पहुँचते ही बेटी के प्रेमी को कायदे से धो दिया


इस घटना को कई दिन हो गए ,
प्रेमी साहब भी अस्पताल से छुट गए
एक दिन फिर आठ नंबर की बस पे चढ़े,
गहना को बुला उससे उसके झूठ का कारण पूछा
गहना ने भी कहा, भई मुझे तो प्रेम के रस का स्वाद चखना था ,
कोई लड़का मेरे पास भी न आता था ,
जब मेरे बाप का नाम जान जाता था
तुम पहले बेवकूफ मिले थे ,
जो लड़की देखते ही उसपर मर मिटे थे
अब मैं क्या कर सकती हूँ ,
तुम्हारी ही बेवकूफी थी ,
लड़की के बाप का नाम जानने की तुमने जरूरत नहीं समझी थी
इसलिए अब सबक पा लो ,
आशिकी से पहले लड़की के बाप का नाम तो जान लो
नहीं तो इसी तरह बेवकूफ आशिक रह जाओगे ,
कभी लड़की के बाप तो कभी लड़की के भाई से धोए जाओगे