Thursday, December 25, 2008

"दरबारी कायरता"

आज फ़िर भारत की संप्रुभता पर आंच है आयी ,
इस बार संसद नहीं मुंबई से धमाकों की आवाज है आयी ।
हम विश्व शान्ति के समर्थक हैं ,
क्यूंकि हम गाँधी-नेहरू के वंशज हैं ।
हमने आक्रमण करना नहीं सिखा है ,
सबको गले लगाकर आगे बढ़ना हमारी परम्परा है ।
किंतु क्या हर वक्त अहिंसा का राग अलापना नहीं एक कायरता है ?
मैं कहता हूँ अब प्रश्न तो आत्मरक्षा का है ,
तो फ़िर क्यूँ सेना के हाथों को बाँध रखा है ?
एक बार आरपार का युद्ध करना जरूरी है,
रोज-रोज मासूमों का मरना क्या उनकी मजबूरी है ?


जो शासन अपने जनता की रक्षा भी न कर सकता है ,
हर घटना के वक्त केवल दो आंसू बहा सकता है ,
उसे शासन में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है ,
क्योंकि यह शान्ति समर्थन नहीं, केवल दरबारी कायरता है ।


एक बार दिल्ली अब हिम्मत बांधे,
सीमापार पड़ोसी को चुनौती पकड़ा दे ।
उसे सारे षडयंत्र अब बंद करने होंगे,
नहीं तो घनघोर युद्ध के परिणाम भुगतने होंगे ।
आश्वासनों और कागजी योजनाओं से आत्मरक्षा नहीं होती ,
इसके लिए कभी-कभी जंगें भी हैं लड़नी पड़ती ।
अब यह शान्ति का राग अलापना बंद करना होगा ,
जब तक उग्रवाद का काम तमाम नहीं होगा ,
तब तक अब संघर्ष विराम नहीं होगा ।

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